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हेमवर्ण: शुक्ले च
भद्रबाहु संहिता
सुतोयाय
मधुवर्णो
भयङ्करः ।
सूर्यवर्णेऽस्मिन् सुभिक्षं क्षेममेव च ॥ ८८ ॥
यदि सूर्य उगता हुआ (हेमवर्ण:) सुवर्ण के वर्ण का हो तो (सुतोयाय) वर्षा होती है (मधुवर्णा भयङ्करः ) मधु के वर्ण का हो तो भयङ्कर होता है ( शुक्ले च सूर्य वर्णेऽस्मिन्न) शुक्ल वर्ण का सूर्य हो तो (सुभिक्षं क्षेममेव च ) निश्चित ही सुभिक्ष क्षेम होगा ही ।
भावार्थ — उगता हुआ सूर्य सुवर्ण वर्ण का हो तो अच्छी वर्षा होगी, मधुके वर्ण का हो तो भयंकर होता है, सफेद वर्ण का हो तो नियम से सुभिक्ष और क्षेम कुशल करेगा ॥ ८८ ॥
हेमन्ते शिशिरे रक्तः पीते ग्रीष्म वर्षासु शुक्लो विपरीतो
शरदि
वसन्तयोः ।
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भयङ्करः ।। ८९ ॥
( हेमन्ते शिशिरे रक्तः ) हेमन्त व शिशिर ऋतु में सूर्य लाल (ग्रीष्मवसन्तयोः पीते ) ग्रीमकाल व वसन्त ऋतु में पीला ( वर्षासु शरदि शुक्लो) वर्षा व शरद ऋतु का सूर्य सफेद हो तो शुभ होता है। (विपरीतो भयङ्करः ) विपरीत हो तो भयंकर होता है।
भावार्थ-यदि सूर्य हेमन्त ऋतु व शिशिर ऋतु में लाल, ग्रीष्म व वसन्त ऋतु में पीला, वर्षा व शरद ऋतु में सफेद रंग का हो तो शुभ फल देने वाला होता है, और उपर्युक्त कथन से विपरीत दिखे तो महान् भयंकर करने वाला होता है ॥ ८९ ॥
दक्षिणे चन्द्र शृङ्गे तु यदा तिष्ठति भार्गवः । अभ्युद्गतं तदा राजा बलं हन्यात् सपार्थिवम् ॥ ९० ॥
( यदा) जब (दक्षिणेचन्द्र शृ) चन्द्रमा के दक्षिण भृंग पर ( भार्गवः तिष्ठति ) शुक्र हो (तु) तो ( तदा) तब (अभ्युद्गतं राजा ) उठते हुए राजा का (बल) बल का (सपार्थिवम् हन्यात्) व सेना का नाश करता है।
भावार्थ - यदि उगते हुए चन्द्र के दक्षिण श्रृंग पर शुक्र हो तो सेना सहित राजा का नाश होता है ।। ९० ।।