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| भद्रबाहु संहिता ।
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भावार्थ-यदि भूतों की प्रतिमा में उत्पात दिखे तो एक महीने तक दासियों को पीड़ा होता है ऐसा निग्रन्थ साधुओं का वचन है॥८१ ।।
अर्हत्सु वरुणे रुद्रे ग्रहे शुक्रे नृपे भवेत् । पञ्चाल गुरुशुक्रेषु पावकेषु पुरोहिते॥ ८२॥ वातेऽग्नौ वासुभद्रे च विश्वकर्म प्रजापतौ।
सर्वस्य तद् विजानीयात् वक्ष्ये सामान्यजं फलम्॥८३ ।। (अर्हत्सु वरुणे रुद्रे) अर्हत् की प्रतिमा, वरुण की प्रतिमा, रुद्र की प्रतिमा (ग्रहे शुक्रे नृपे) ग्रहों प्रतिमा, शुक्र की प्रतिमा (नृपे) राजा की प्रतिमा (पञ्चाल गुरुशुक्रेषु) पञ्चालों की प्रतिमां, गुरु प्रतिमा, शुक्र प्रतिमा (पावकेषु पुरोहिते) अग्नि प्रतिमा, पुरोहित प्रतिमा (वातेऽग्नौ वासु भद्रे च) वायु, अग्नि और वासुभद्र की प्रतिमा (विश्वकर्मप्रजापतौ) विश्वकर्मा की प्रतिमा, प्रजापति की प्रतिमा में उत्पात दिखे तो (तद्) इन (सर्वस्य) सबका (फलम्) फल (सामान्यज) सामान्य ही (वक्ष्ये) कहा (विजानीयात्) ऐसा जानना चाहिये।
भावार्थ-यदि अर्हतो की प्रतिमां में, वरुण प्रतिमा, रुद्र प्रतिमा, ग्रहों की प्रतिमा, शुक्र की प्रतिमा, द्रोण प्रतिमा, इन्द्र प्रतिमा, अग्नि प्रतिमा, वायु, अग्नि, समुद्र, विश्वकर्मा, प्रजापति आदि की प्रतिमाओं में यदि उत्पात दिखे तो समझो इसका फल सामान्य ही होता है, ऐसा जानना चाहिये।। ८२-८३ ।।
चन्द्रस्य वरुणस्यापि रुद्रस्य च वधूषु च।
समाहारे यदोत्पातो राजानमहिषी भयम्।। ८४॥ (यदि) यदि (चन्द्रस्य) चन्द्रमा की प्रतिमा (वरुणस्यापि) वरुण की प्रतिमा और भी (रुद्रस्य च वधूषु च) रुद्र की प्रमि व पार्वती की प्रतिमा में (उत्पातो समाहारे) उत्पात दिखे (राजाग्रमहिषी भयम्) राजा की रानी को भय उत्पन्न होगा।
भावार्थ-यदि चन्द्रमा की प्रतिमा में रुद्र व पार्वती की प्रतिमा में उत्पात दिखे तो राजा की रानीको उत्पात होगा ।। ८४ ।।