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भद्रबाहु संहिता |
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वासुदेवे यधुत्पातस्तस्योपकरणेषु च।
चक्रारूढ़ाः प्रजा ज्ञेयाश्चतुर्मासान् वधो नृपे॥१९॥ (वासुदेवेयद्युत्पात:) वासुदेव की प्रतिमा में यदि उत्पात दिखे (च) और (तस्योपकरणेषु) उसके उपकरणों में उत्पात दिखे तो (चर्मासान्) चार महीने में (प्रजा चक्रारूढाः) प्रजा चक्रारूढ हो जायगी (नृपे वधोज्ञेया:) और राजा का वध हो जायगा।
भावार्थ-यदि वासुदेव की मूर्ति में अथवा उसके उपकरणों में उत्पात दिखाई दे तो समझो चार महीने में प्रजा चक्र के समान भ्रमण करने लगेगी और राजा का भी मरण हो जायगा॥६९॥
प्रचुरे सार उत्पातो गणिकानां भयावहः।
कुशीलानां च दृष्टव्यं भयं चेद्वाऽष्टमासिकम्॥७॥ (प्रद्युम्नेवाऽथ उत्पातो) वा प्रद्युम्न की मूर्ति में उत्पाद दिखाई पड़े तो समझो (गणिकानां भयावहः) वेश्याओं के लिये भयावह होगा, (चेद्वाऽष्ट मासिकम्) और आठ महीने तक (कुशीलानां च भयंदृष्टव्यं) कुशील लोगों के लिये भय का कारण
होगा।
भावार्थ-प्रद्युम्न की मूर्ति में उत्पात दिखे तो वेश्याओं के लिये भय होगा, और आठ महीने तक कुशील लोगों को भय का कारण बना रहेगा।। ७०॥
यदार्यप्रतिमायां तु किञ्चिदुत्पातजं भवेत्।
चौरा मासात्रिपक्षाद्वा विलीयन्ते रुदन्ति वा॥७१।। (यदि) यदि (आर्यप्रतिमायां) सूर्य की प्रतिमा में (किञ्चिदुत्पातजं भवेत्) थोड़ा बहुत भी उत्पात दिखे (तु) तो (मासा) एक महीने में व (त्रिपक्षाद्वा) तीन पक्ष में (चौरा) चोर (विलीयन्ति वारुदन्ति) विलीन हो जाते हैं व रोते हैं।
भावार्थ-यदि सूर्य की प्रतिमा में थोड़ा-बहुत भी उत्पात दिखे तो एक महीने व डेढ़ महीनेमें चोर जन नष्ट हो जाते हैं व दुःख उठाते हैं॥७१॥