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यदि राजानश्च
भद्रबाहु संहिता
वैश्रवणे
कश्चिदुत्पातं सचिवाश्चपञ्चमासान्
( यदि) जब (वैश्रवणे) श्रवण नक्षत्रमें ( कश्चिदुत्पातं समुदीरयेत् ) कोई भी उत्पात दिखे तो ( पञ्चमासान् ) पाँच महीनों में ( राजानश्चसचिवाश्च) राजा को या मन्त्री को ( स पीडयेत्) पीड़ा देता है।
स
समुदीरयेत् । पीडयेत् ॥ ६२ ॥
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भावार्थ — जब श्रवण नक्षत्र में कोई भी उत्पात दिखता है तो समझो राजा को पाँच महीने में कष्ट होगा या मन्त्री को कष्ट होगा ॥ ६२ ॥
यदोत्यातोऽयमेकश्चिद् दृश्यते विकृतः तदा व्याधिश्च मारी च चतुर्मासात् परं
क्वचित् । भवेत् ॥ ६३ ॥
( यदोत्पातोऽय मेकश्चिद्) यदि कहीं पर किसी प्रकार का उत्पात ( विकृतः क्वचित् दृश्यते) विकृतरूप दिखे तो (तदा) तब (चतुर्मासात् ) चार महीने में (परं व्याधिश्च च मारी) व्याधियाँ या मारी रोग उत्पन्न ( भवेत् ) होगा।
भावार्थ — जब कहीं पर किसी प्रकार का विकृत उत्पात दिखलाई पड़े तो समझो चार महीनों में व्याधि या मारी रोग उत्पन्न होगा || ६३ ॥
यदा चन्द्रे वरुणे
वोत्पातः कश्चिदुदीर्यते ।
मारक: सिन्धुसौवीर सुराष्ट्र वत्स भूमिषु ॥ ६४ ॥ भोजनेषु भयं विन्धात् पूर्वे च म्रियते नृपः । पञ्चमासात् परं विन्द्याद् भयं घोरमुपस्थितम् ॥ ६५ ॥ ( यदा) जब (चन्द्रे वरुणे ) चन्द्र या वरुण में ( कश्चिदुदीयति वोत्पातः) कहीं कोई उत्पात दिखे तो ( सिन्धु सौवीर सुराष्ट्र वत्स भूमिषु) सिन्धु देशोंमें, सौवीर देश में, सुराष्ट्र में और वत्सभूमि में (मारकः) मरण का भय उपस्थित होगा। (भोजनेषु भयं विन्द्यात्) भोजन में भय जानो ( पूर्वे च म्रियते नृपः ) पहले ही राजा का मरण हो जायगा, (पञ्चमासात् ) पाँच महीनों में (परं घोर भयं उपस्थितम् विन्द्याद्) महान घोर भय उपस्थित होगा ।
भावार्थ जब चन्द्रमा या वरुण के अन्दर कोई भी विकार रूप उत्पाद