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भद्रबाहु संहिता
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भावार्थ-अगर राजा के उपकरण अकस्मात भंग हो जाय तो चलित होने पर गिर जाने पर और मांसाहारी के सेवा करने पर समझो राजा को पीड़ा होगी।। ५५!!
वाजिवारण यानानां मरणे छेदने द्रुते।
परचक्रागमात् विन्धादुत्पातझो जितेन्द्रियः॥५६॥ (वाजिवारण यानानां) घोड़े, हाथी आदि सवारियों के अकारण ही (मरणे) मरण (छेदने द्रुते) छेदन या घायल हो जाने पर (परचक्रागमात्) परचक्र का आगमन रूप (उत्पातज्ञो जितेन्द्रियः) उत्पाद होगा ऐसा जितेन्द्रिय निमित्तज्ञ को (विन्द्याद्) जानना चाहिये।
भावार्थ-घोड़ो, हाथी सवारियों के अकारण ही मर जाने पर छेदन हो जाने पर या घायल हो जाने पर समझो उस देश में परचक्र का आगमन होगा ऐसा श्री जितेन्द्रिय निमित्तज्ञ ने कहा है ऐसा आप समझो।। ५६॥
क्षत्रियाः पुष्पितेऽश्वत्थे ब्राहाणाश्चाप्यु दुम्बरे।
वैश्याः प्लक्षेऽथ पीड्यन्ते न्यग्रोधे शूद्रदस्यवः ॥५७॥ (अश्वत्थेपुष्पिते क्षत्रियाः) अचानक पीतल के पुष्पित होने पर क्षत्रिय और (दुम्बरे श्चाप्यु ब्राह्मणा) उदम्बर के पुष्पि हो जाने पर ब्राह्मण और (अथ प्लक्षे वैश्याः) पाकर के पुष्पित होने पर वैश्य (न्याग्रोधे शूद्रदस्यवः) वट वृक्ष के पुष्पित हो जाने पर शूद्र पीड़ित होते हैं।
भावार्थ-अकारण पीपल के पुष्पित हो जाने पर क्षत्रिय लोग पीड़ित होंगे उदम्बर वृक्ष के पुष्पित हो जाने पर ब्राह्मण पीड़ित होंगे, पाकर के पुष्पित हो जाने पर वैश्य पीड़ित होंगे और वट वक्ष के पुष्पित हो जाने पर शूद्र पीड़ित होंगे।। ५७!
इन्द्रायुधं निशिश्वेतं विप्रान् रक्तं च क्षत्रियान्।
निहन्ति पीतकं वैश्यान् कृष्णं शुद्रभयङ्करम् ॥ ५८॥ (इन्द्रयुधं) इन्द्रधनुष रात्रि में यदि (श्वेत) सफेद दिखे तो (विप्रान्) ब्राह्मणों को (रक्तं च क्षत्रियान्) लाल दिखे तो क्षत्रियों को (पीतकं वैश्यान्) पीला दिखे तो वैश्यों को (कृष्णं शूद्र भयंकरम्) काला दिखे तो शूद्रों को भयंकर रूप में (निहन्ति) मारता है।