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चतुर्दशोऽध्यायः
(यदा) जन (चैत्यवृक्षो) चैत्य वृक्ष (रव मानस्तु पतेत्) रोने रूप व कष्ट रूप शब्द करता हुआ (पतेत्) नीचे गिरे तो (देशज) देश वासियों को (पञ्चमासिकम्) पाँच महीनेमें (सततं भयमाख्याति) सतत् भय उत्पन्न होगा।
भावार्थ-जब चैत्यवृक्ष या (गुलर का वृक्ष) रोता हुआ या आर्त रूप शब्द करके नीचे गिरे जाय तो समझो देशवासियों को सतत् पाँच महीने में भय का कारण उत्पन्न होगा ॥२०॥
नाना वस्त्रैः समाच्छन्ना दृश्यन्ते चैव यद् द्रुमाः।
राष्ट्रजं तद्भयं विन्द्याद् विशेषेण तदा विषे॥२१॥ (यद् द्रुमाः) जब वृक्ष (नाना वस्त्रैः समाच्छन्ना दृश्यन्ते) नाना वस्त्रों से सहित दिखते हैं तो (राष्ट्रज) देशवासियों के लिये (तदा विषे विशेषेण) तब विशेष रीति से (भयं विन्द्या भय उत्पन्न होगा।
भावार्थ-जब वृक्ष नाना वस्त्रों से सहित दिखाई देता है तो विशेष रीति से देशवासियों को भय उत्पन्न होगा ।। २१ ॥
शुक्ल वस्त्रोद्विजान-हन्ति रक्त: क्षत्रं तदाश्रयम्।
पीतवस्त्रो यदा व्याधिं तदा च वैश्यघातकः ॥२२॥ (शुक्ल वस्त्रो द्विजान-हन्ति) यदि वृक्षों पर सफेद कपड़ा दिखे तो ब्राह्मणों का नाश करेगी, (रक्तः क्षत्रं तदाश्रयम्) लाल वस्त्र दिखे तो क्षत्रियों का नाश (पीत वस्त्रो यदा व्याधि) पीला वस्त्र दिखे तो व्याधि होगी, (तदा च वैश्यघातकः) विशेषता से वैश्यों का घातक होगी।
भावार्थ-वृक्षों पर सफेद कपड़ा दिखे तो ब्राह्मणों के विनाश का कारण होगा, लाल कपड़ा दिखे तो क्षत्रियों के नाश का कारण होगा, पीला दिखे तो व्याधि होगी, विशेषता से वैश्यों के घात का कारण होगा ।। २२॥
नीलवस्त्रैस्तथा श्रेणीन् कपिलैम्लेंच्छमण्डलम्।
धूर्तीनिहन्तिश्वपचान् चाण्डालानप्यसंशयम्॥२३॥ (नीलवस्त्रैस्तथाश्रेणीन्) नीले वस्त्रों से युक्त वृक्ष दिखे तो शुद्रादिकों का