________________
३३१
त्रयोदशोऽध्यायः
यात्रा में उल्लू का विचार—यदि यात्राकालमें उल्लू बाईं ओर दिखलाई पड़े तथा उल्लु अपना भोजन भी साथमें लिये हो तो यात्रा सफल होती है। यदि उल्लू वृक्षपर स्थित होकर अपना भोजन सञ्चय करता हुआ दिखलाई पड़े तो यात्रा करनेवाला इस यात्रामें अवश्य धनलाभ कर लौटता है। यदि गमन करनेवाले पुरुषके वाम भागमें उल्लूका प्रशान्तमय शब्द हो और दक्षिण भागमें असम शब्द हो तो यात्रामें सफलता मिलती है। किसी भी प्रकारकी बाधा नहीं आती है। यदि यात्राककि वामभागमें उल्लू शब्द करता हुआ दिखलाई पड़े अथवा बाईं ओर से उल्लूका शब्द सुनाई पड़े तो यात्रा प्रशस्त होती है। यदि पृथ्वी पर स्थित होकर उल्लू शब्द कर रहा हो तो धनहानि, आकाश में स्थित होकर शब्द कर रहा हो तो कलह, दक्षिण भागमें स्थित होकर शब्द कर रहा हो तो कलह या मृत्युतुल्य कष्ट होता है। यदि उल्लूका शब्द तैजस और पवनयुक्त हो तो निश्चयत: यात्रा करनेवाले की मृत्यु होती है। यदि उल्लू पहले बायीं ओर शब्द करे, पश्चात् दक्षिणकी ओर शब्द करे तो यात्रामें पहले समृद्धि, सुख और शान्ति; पश्चात् कष्ट होता है। इस प्रकारके शकुनमें यात्रा करनेसे कभी-कभी मृत्यु तुल्य भी कष्ट भोगना पड़ता है।
नीलकण्ठ विचारयदि यात्राकालमें नीलकण्ठ स्वस्तिक गति में भश्य पदार्थों को ग्रहण कर प्रदक्षिणा करता हुआ दिखलाई पड़ तो सभी प्रकारके मनोरथोंकी सिद्धि होती है। यदि दक्षिण–दाहिनी ओर नीलकण्ठ गमन समयमें दिखलाई पड़े तो विजय, धन, यश और पूर्ण सफलता प्राप्त होती है। यदि नीलकण्ठ काकको पराजय करता हुआ सामने दिखलाई पड़े तो निर्विघ्न यात्राकी सिद्धि करता है। यदि वनमध्यमें रुदन करता हुआ नीलकण्ठ सामने आवे अथवा भयङ्कर शब्द करता हुआ या घबड़ाकर शब्द करता हुआ आगे आवे तो यात्रामें विघ्न आते हैं। धन चोरी चला जाता है और जिस कार्यकी सिद्धिके लिए यात्रा की जाती है वह सफल नहीं होती। यदि यात्राकालमें नीलकण्ठ मयूरके समान शब्द करे तो यशप्राप्ति, धनलाभ, विजय एवं निर्विघ्न यात्रा सिद्धि होती है। गमन करनेवाले व्यक्ति के आगे-आगे कुछ दूर तक नीलकण्ठ के दर्शन हों तो यात्रा सफल होती है। धन, विजय और यश प्राप्त होता है। शत्रु भी यात्रामें मित्र बन जाते हैं तथा वे सभी तरह की सहायता करते हैं।