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बाईसवें अध्याय में :- सूर्य संक्रांति के उदय, श्रृंग, दिशा और चंद्र संयोग के फल वर्णित हैं।
तेइसवें अध्याय में :- सभी नक्षत्रों, ग्रहों, राशियों में, रात-दिन में चंद्र की स्थिति पर विस्तृतफल है।
चौबीसवें अध्याय में :- ग्रह युद्ध, राहूघात, चंद्रघात, शुक्रघात का देश विदेश पर प्रभाव वर्णित है।
पच्चीसवें अध्याय में : नक्षत्र ग्रहों के अनुसार तेजी मंदी और सभी क्रय-विक्रय के घट-बढ़ का विचार है।
छब्बीसवें अध्याय में :- सभी प्रकार के शुभ-अशुभ स्वप्नों के फल विस्तार से वर्णित हैं।
सत्ताइसवें अध्याय में :- तूफान, विज शास्त्र उत्पादों का विचार नवीन वस्त्रधारण, गृह शांति, आभूषण, विज, शास्त्र विधायक नक्षत्रों का वर्णन है 28, 29 वें अप्राप्य अध्याय हैं। तीसवें अष्टांग निमित्तों का वर्णन है रोगों की संख्या, संलेखना वर्णन, अरिष्ट कथन, कुष्मांडिली, पुलिंदीनी देवी मंत्र, शकुन, छाया द्वारा रोगी, रोग परीक्षा, मृत्यु सूचक निमित्त विवाह, राज्योत्सव वर्णन है।
इस प्रकार भद्रबाहु संहिता गागर में सम्पूर्ण ज्योतिष का महासागर है इसी प्रस्तुति इस मंगल कलश में प्राप्त है। यह जैन ज्योतिष और उसके साधकों की अपूर्व तपस्या का अमृत फल है जो सर्वतोभद्र है। अथर्ववेद में कहा गया है।
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अयं हस्तो भगवान अयंते बलवत्तरः
आपका हाथ ही भगवान है, यह भगवान से भी बलवान है करलखन में हस्तरेखा पर से भूत भविष्य वर्तमान की भविष्यवाणियों अचूक तो हैं ही साथी घटनाओं के समय की घोषणा भी शत प्रतिशत सच संभव है। रेखाओं, सामुद्रिक चिह्नों, आकृतियों, रंगों, नक्षत्रों के आधार पर सत्य भविष्य कथन ही नहीं, किन्तु जन्मकुंडली, निर्माण, कुंडली निर्माण, प्रश्न कुंडली के लिए भी यह ग्रंथ उत्तम दर्शन देने में समर्थ है। हस्त संजीवनी, कीरो की पामिष्टी, सेंट जर्मन, बेनइम और विदेशी सभी हस्त रेखा ग्रंथों के जनक इस ग्रंथ में, पुरुष, स्त्री के
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