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ग्रंथ की टीका निर्विघ्न समाप्त हुई, लेकिन स्वार्थी, कपटी शिष्यों के मायाजाल का शिकार बनना पड़ा, जिससे मानसिक एवं शरीरिक संताप उठाना पड़ा। संसार के स्वरूप साक्षात् मायाजाल प्रकट हुआ, मन अति तीव्र गति से और भी दृढ़ वैराग्य की और बढ़ा। द्वादशानुप्रेक्षा के चितवन से मन को शांति मिली। खैर... जो होना है वह सब कर्मानुसार ही होता है। ऐसी विषम परिस्थिति के होने पर भी इस ग्रथ की टीका का कार्य समाप्त हुआ यह एक आश्चर्यजनक बात है कि यह कार्य बड़ा ही परिश्रम साध्य कार्य था, तो भी पूरा हो गया। यही एक हर्ष की बात है। उत्थान पतन तो चलता ही रहता है। मैंने इस ग्रंथ की टीका का नाम क्षेमोदय टीका रखा है। आज दिन तक किसी भी ग्रंथ की टीका या संकलन का नाम मैंने अपने नाम से नहीं रखा, प्रत्येक टीका गुरुओं के नाम से या शिष्यों के नाम से की है, इसी कारण इस ग्रंथ की टीका का नाम भी मेरी प्रिय शिष्या आर्यिका क्षेम श्री के नाम से क्षेमोदय टीका रखा है। ग्रंथ की उपयोगिता निमित्तज्ञ को अच्छी रहेगी। नयी टीका की विशेषता यही रहेगी कि इसमें प्रत्येक के श्लोकानुसार चित्र भी हैं। चित्र देखते ही पाठकों को ग्रहों का ज्ञान, वर्णो का ज्ञान, सूर्य चन्द्र के ग्रहण का ज्ञान आदि सब बातों का ज्ञान अति सरलतापूर्वक हो जायगा।
* इस ग्रंथ में प्रकाशित चित्रों को बनवाने वाले श्री बाबू लाल जी शर्मा ने बहुत परिश्रम किया है, उनको मेरा अशीर्वाद है। भारतीय ज्ञान पीठ से छपी हुई प्रति को ही शुद्ध समझ कर उसी का सहारा लिया है। कुछ उपयोगी प्रकरण था उसको वैसा का वैसा लिया है, सो उनका आभारी हूँ। डा. नेमीचन्दजी ज्योतिषाचार्य तो एक महान प्रतिभाशाली विद्वान थे। आज वह हमारे सामने नहीं है तो भी उनका नाम अमर है, आपने अपने जीवन में अनेक प्रकार का साहित्य सृजन कार्य किया, ज्योतिष ज्ञान भी आपका अच्छा था, आपकी टीका भद्रबाहु संहिता है, आपने केवल ज्ञान प्रश्न चूडामणि, भारतीय ज्ञान ज्योतिष आदि अनेक ग्रंथ लिखे व ग्रंथों की टीका की, मैंने उनकी भद्रबाहु संहिता की टीका में से पाठकों की आवश्यकतानुसार प्रकरण लिया है, उनका भी मैं आभारी हूँ।
उपाध्याय मुनि श्री जयसागर जी एवं उपाध्याय मुनि श्री गुणधर नन्दी जी ने