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प्रयोदशोऽध्यायः
खुरैर्धराम्) और अपने खुर से पृथ्वी को खोदते हो (च) और (यदा) जब (नागा:) हाथी (नदन्ति) प्रशन्नता से चिंधाड़ते हो तो समझो (ध्रुवं) निश्चय से (जयम्) जय (विन्द्याद्) होगी ऐसा समझो।।
भावार्थ-जब घोड़े बार-बारे हंसे और प्रशन्न होकर अपने खुर से पृथ्वी को खोदे और हाथी प्रसन्नतापूर्वक चिंघाड़े तो समझो राजा की जय होगी।। १६५।।
पुष्पाणि पीतरक्तानि शुक्लानि च यदा गजाः।
अभ्यन्तराग्रदन्तेषु दर्शयन्ति तदा जयम्॥१६६॥ (यदा) जब (गजा:) हाथी (पीतरक्तानि, शुक्लानि) पीले, लाल, सफेद रंग के (पुष्पाणि) पुष्प (अभ्यन्तराग्रदन्तेषु) अभ्यन्तरगतदांतो के ऊपर (दर्शयन्ति) दिखाते है तो समझो (तदा जयम्) तब राजा की जय होगी।
भावार्थ-जब हाथी अभ्यन्तरदांतों के ऊपर लाल, पीले, सफेद रंग के फूल दिखता है तो समझो राजा की विजय को सूचित कर रहा है। १६६ ।।
यदा मुञ्चन्ति शुण्डाभिर्नागा नादं पुनःपुनः।
परसैन्योपघाताय तदा विन्द्याद् ध्रुवम् जयम् ।। १६७।। (यदा) जब (नागा) हाथी (शुण्डाभिः) सुण्ड से (पुन:पुन:) बार-बार (नादं मुञ्चन्ति) शब्द को छोड़ता है (तदा) तब (परसैन्योपघाताय) पर आक्रमणकारी सेना घात के लिये और (ध्रुवम् जयम् विन्द्याद) निश्चय से नगरस्थ राजा की जय होगी ऐसा जानो।
भावार्थ-पर सेना के ऊपर विजय पाने वाले राजा के प्रयाण के समय में यदि हाथी सूंड से बार-बार शब्द करते हो तो समझो पर सेना का नाश कर राजा शीघ्र ही विजयी होकर वापस आयेगा ।। १६७॥
पादैः पादान् विकर्षन्ति तलैर्वा विलिखन्ति च।
गजास्तु यस्य सेनायां निरुध्यन्ते ध्रुवं परैः ।।१६८॥ (यस्य) जिस (सेनायां) सेना के (गजास्तु) हाथी (पादैः पादान् विकर्षन्ति) पाँव से पाँव को घिसते हो (वा) व (च) और (तलैः) तलसे (विलिखन्ति) लेखन करते हो तो (ध्रुवं परे: निरुध्यन्ते) निश्चय से उस सेना का निरोध हो जायगा।