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भद्रवार सहिता
गो-नागवाजिनां स्त्रीणां मुखाच्छोणितबिन्दवः।
द्रवन्ति बहुशो यत्र तस्थ राज्ञः पराजयः॥१६२॥
राजा के प्रयाण काल में (गो) गाय (नाग) हाथी, (वाजिनां) घोड़े, (स्त्रीणां) स्त्रियों के (मुखाच्छोणितबिन्दव:) मुख पर रक्तकी बून्द दिखे (बहुशोयत्र द्रवन्ति) बहुत जगह दिखे तो (तस्य राज्ञः पराजय:) उस राजा की पराजय होगी।
भावार्थ-युद्ध के लिये निकलते समय में गाय, हाथी, घोड़े व स्त्रीयों के मुख पर सर्वत्र रक्त की बूंदे दिखलाई पड़े तो समझो राजा की पराजय होगी।। १६२॥
नरा यस्य विपद्यन्ते प्रयाणे वारणैः पथि।
कपालं गृह्य धावन्ति दीनास्तस्य पराजयः ।।१६३॥ (यस्य) जिस राजा के (प्रयाणे) प्रयाण काल में (वारणैः) हाथी (पथि) मार्गस्थ (नरा) मनुष्यों को (विपद्यन्ते) पीड़ा पहुँचावे, और लोग (कपालं गृह्य धावन्ति) सिर पकड़ कर दौड़े वो भी (दीना:) दीन होकर तो (तस्य) उसकी (पराजयः) पराजय होगी।
भावार्थ-युद्ध के लिये प्रयाण काल में हाथी लोगों को पीड़ित करे और लोग सिर पकड़ कर करुण शब्द करते हुए दौड़े तो समझो उसकी पराजय होगी॥१६३ ।।
यदा धुनन्ति सीदन्ति निपतन्ति किरन्ति च।
खादमानास्तु खिद्यन्ते तदाऽऽख्याति पराजयम् ॥१६४॥ (यदा) जिसके घोड़े (धुनन्ति) धुनते हो, (सीदन्ति) दुःखित होते हो, (निपतन्ति) गिरते हो, (किरन्ति च) और खिन्न होते हो, (खादमानास्तु खिद्यन्ते) खाते हुए भी खेदित हो तो (तदाऽऽख्याति पराजयम्) तब उस की पराजय होगी ऐसा कहना
भावार्थ-जिस सेना के घोड़े खाते हुए खेद-खिन्न हो, सिर धुनते.हो, दुःखित हो, गिरते हो, खिन्न होते हो तो समझो राजा की पराजय होगी॥१६४ ।।
हेषन्त्यभीक्ष्णमश्वास्तु विलिखन्ति खुरैर्धराम्।
नदन्ति च यदा नागास्तदा विन्द्याद् ध्रुवं जयम्॥१६५॥ (अश्वास्तु) जब घोड़े (हेषन्त्य भीक्ष्ण) बार-बार हँसते हो (विलिखन्ति