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प्रयोदशोऽध्यायः
वृत्ति वाला निमित्तज्ञ तत्पर होकर (अदीनमनसंकल्पो) दीनता का भाव छोड़ हद संकल्पपूर्वक (भव्यादि) भव्यजीवों को (बुधः) बुद्धिमान (लक्षयेद्) लक्ष्य करे।
___ भावार्थ निमित्त ज्ञानी, दृढ़ता पूर्वक निमित्तों के शुभाशुभ का निरूपण करे, क्योंकि साधु नि बाला निमित्तन्न ही निपिनों को जानने में समर्थ होता है॥४८॥
कुञ्जरस्तु यदा नर्देत् ज्वालमाने हुताशने।
स्निग्धदेशे ससम्भ्रान्तो राज्ञां विजयमावहेत्॥४९॥ (स्निग्धदेशे) स्निग्ध देश में (यदा) जब (कुञ्जरस्तु नर्देत) हाथी चिंघाड़ ने लगे और (हुताशने ज्वलमाने) अग्नि जलती हुई (स सम्भ्रान्तो) दिखाई दे तो (राज्ञां) राजा की (विजयमावहेत्) विजय होगी, ऐसा जानो।
भावार्थ-यदि स्निग्ध देश में अकस्मात् हाथीयों की चिंघाड़ते हुए और अग्नि जलती हुई दिखाई दे तो समझो राजा की विजय अवश्य होगी॥४९॥
एवं हयवृषाश्चाऽपि सिंहव्याघ्राश्च सुस्वराः ।
नर्दयन्ति तु सैन्यानि तदा राजा प्रमर्दति॥५०॥ (एवं) इसी प्रकार (हय) घोड़े, (वृषाश्चाऽपि) बैल, और भी (सिंह व्याघ्राच सुस्वरा:) सिंह, व्याघ्र आदि सुस्वर कर (तु) तो (तदा) तब (राजा) राजा और राजा की (सैन्यानि) सेना (नर्दयन्ति) दूसरे राजा की सेना को (प्रमदति) प्रमर्दित करता है।
भावार्थ-इसी प्रकार घोड़े, बैल, सिंह, व्याघ्र पशु सुस्वर कर बोले और उसी समय राजा का युद्ध के लिये प्रयाण हो तो समझो वो राजा दूसरे राजा की सेना का मर्दन कर डालेगा || ५०॥
स्निग्धोऽल्पघोषो धूम्रोऽथ गौरवर्णो महानृजुः ।
प्रदक्षिणोऽप्यवच्छिन्न: सेनानी विजयावहः ॥५१॥ यदि अग्नि (स्निग्धो) स्निग्ध हो (अल्पघोषो) थोड़ा-थोड़ा शब्द करती हो (धूम्रो) धुएँ से सहित हो (अथ) और (गौरवर्णो) गौर वर्ण वाली हो (महानृजु:) महान् ऋतुरूप हो (प्रदक्षिणोऽप्यवच्छिन्न) अवच्छिन्न रूप प्रदक्षिण करती दिखाई पड़े तो (सेनानी विजायवहः) सेनानी की विजय होगी।