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द्वादशोऽध्याय:
शुक्लपक्ष निश्चित है। फाल्गुन मासके शुक्लपक्षमें उत्पन्न गर्भ भाद्रपदमासके शुक्लपक्षमें जलकी वर्षा करता है। फाल्गुनके कृष्णपक्षका गर्भ आश्विनके शुक्लपक्षमें जलकी वृष्टि करता है।
पूर्वदिशाके मेघ जब पश्चिमकी ओर उड़ते हैं और पश्चिमके मेघ पूर्वदिशामें उदित होते हैं, इसी प्रकार चारों दिशाओंके मेध पवनके कारण अदला-बदली करते रहते हैं, तो मेघका गर्भ काल जानना चाहिए। जब उत्तर, ईशानकोण और पूर्व दिशा वायुमें आकाश विमल, स्वच्छ और आनन्द युक्त होता है तथा चन्द्रमा और सूर्य स्निग्ध, श्वेत और बहुत घेरेदार होता है, उस समय भी मेघोंके गर्भ धारणका समय रहता है। मेघोंके गर्भधारण करनेका समय मार्गशीर्ष अगहन, पौष, माघ
और फाल्गुन है। इन्हीं महीनोंमें मेघ गर्भ धारण करते हैं। जो व्यक्ति गर्भधारणका काल पहचान लेता, वह गणित द्वारा बड़ी ही सरलतासे जान सकता है कि गर्भधारणके १९५ दिन के उपरान्त वर्षा होती है। अगहनके महीनमें जिस तिथिको मेघ गर्भ धारण करते हैं, उस तिथिसे ठीक १९५३ दिनमें अवश्य वर्षा होती है। अत: गर्भधारणकी तिथिका ज्ञान लक्षणोंके आधार पर ही किया जा सकता है स्थूल और स्निग्ध मेघ जब आकाशमें आच्छादित हों और आकाशका रंग काकके अण्डे और मोरके पंखके समान हो तो मेघोंका गर्भ धारण समझना चाहिए । इन्द्रधनुष और गम्भीर गर्जनायुक्त, सूर्याभिमुख, बिजलीका प्रकाश करने वाले मेघ हों तो; ईशान और पूर्व दिशामें गर्भधारण करते हैं। जिस समय मेघ गर्भधारण करते हैं उस समय दिशाएँ शान्त हो जाती हैं, पक्षियोंका कलरव सुनाई पड़ने लगता है। अगहनमासमें जिस तिथिको मेघ सन्ध्याकी अरुणिमासे अनुरक्त और मण्डलकार होते हैं, उसी तिथिको उनकी गर्भ धारणकी क्रिया समझनी चाहिए। अगहनमासमें जिस तिथिको प्रबल वायु चले, लाल-लाल बादल आच्छादि हों. चन्द्र और सूर्यकी किरणें तुषारके समान कलुषित
और शीतल हो तो छिन्न-भिन्न गर्भ समझना चाहिए। गर्भ धारणके उपर्युक्त चारों मासोंके अतिरिक्त ज्येष्ठामास भी माना गया है। ज्येष्ठमें शुक्लपक्षकी अष्टमीसे चार दिनों तक गर्भ धारणकी क्रिया होती है। यदि ये चारों दिन एक समान हो तो सुखदायी होते है. तथा गर्भधारण क्रिया बहुत उत्तम होती है। यदि इन दिनोंमें एक दिन जल बरसे, एक दिन पवन चले, एक दिन तेज धूप पड़े और एक दिन