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भद्रबाहु संहिता
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तो मेघ का गर्भ काल जानना चाहिये। जब उत्तर, ईशान कोण और पूर्व दिशा वायुमें आकाश विमल स्वच्छ और आनन्द युक्त होता है तथा चन्द्रमा और सूर्य स्निग्ध श्वेत और बहुत घेरेदार होता है उस समय भी मेघों के गर्भ धारण का समय रहता हैं।
मेघों के गर्भ धारण करने का सर मार्गीर्य, पौष, गए, फाल्गुन है इन्हीं महीनों में मेघ गर्भ धारण करते हैं। गणित में निष्पात् निमित्त ज्ञानी ही गर्भों के लक्षण जानकर आज का गर्भ कब बरसेगा यह जान लेता है जो गर्भ आज दिखाई दिया है वो एक सौ पच्चाणवें दिनो में वर्षा करता है। मार्गशीर्ष के महीने में जिस तिथि को गर्भ धारण होता है उस तिथि से ठीक ९९५ वें दिन में वह पककर अवश्य वर्षा करता है। गर्भ तिथिका ज्ञान धारण तिथि के लक्षणों से ही किया जाता है ।
स्थूल और स्निग्ध मेघ जब आकाश में आच्छादित हों और आकाश का रंग काक के अण्डे और मोर के पंख के समान हो तो मेघों का गर्भधारण समझो। इस प्रकार अन्य समझो। यहाँ डॉ. नेमीचन्द का अभिप्राय देते हैं।
विवेचन मेघ गर्भकी परीक्षा द्वारा वर्षाका निश्चय किया जाता है। वराहमिहिर ने बतलाया है — " दैवविदवहितचित्तो घुनिशं यो गर्भलक्षणे भवति । तस्य मुनेरिव वाणी न भवति मिथ्याम्बुनिर्देशे ॥" अर्थात् जो दैवका जानकार पुरुष रात-दिन गर्भ लक्षणमें मन लगाकर सावधान चित्तसे रहता है, उसके वाक्य मुनियोंके समान मेघगणितमें कभी मिथ्या नहीं होते। अतः गर्भकी परीक्षाका परिज्ञान कर लेना आवश्यक है। आचार्यके इस अध्यायमें गर्भधारणका निरूपण किया है। मार्गशीर्षमासमें शुक्लपक्षकी प्रतिपदासे जिस दिन चन्द्रमा पूर्वाषाढा नक्षत्रमें होता है, उस दिनसे ही सब गर्भो का लक्षण जानना चाहिए। चन्द्रमा जिस नक्षत्रमें रहता है, यदि उसी नक्षत्रमें गर्भ धारण हो तो उस नक्षत्रसे १९५ दिनके उपरान्त प्रसवकाल — वर्षा होनेका समय होता है। शुक्लपक्षका गर्भ कृष्णपक्षमें और कृष्णपक्षका गर्भ शुक्लपक्षमें, दिनका गर्भ रात्रिमें, रातका गर्भ दिनमें, प्रात: कालका गर्भ सन्ध्यामें और सन्ध्याका गर्भ प्रात: कालमें जलकी वर्षा करता है। मार्गशीर्षके आदिमें उत्पन्न गर्भ एवं पौष मासमें उत्पन्न गर्भ मन्दफल युक्त हैं— अर्थात् कम वर्षा होती है । माघमासका गर्भ श्रावण कृष्णपक्ष में प्रातः काल को प्राप्त होता है । माघके कृष्णपक्ष द्वारा भाङ्गपदमासका