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संवत्सर निकालनेकी प्रक्रिया
संवत्कालो ग्रहयुत कृत्वा शून्यसैर्हतः । शेषाः संवत्सरा ज्ञेयाः प्रभवाद्या बुधैः क्रमात् ॥
अर्थात — विक्रम संवत् ९ जोड़कर ६० का भाग देनेमें जो शेष रहे, वह प्रभवादि गत संवत्सर होता है, उससे आगेवाला वर्तमान होता है। उदाहरण - विक्रम संवत् २०१३, इसमें ९ जोड़ा तो २०१३ + ९ = २०२२ ६० २३ उपलब्धि, शेष ४२वीं संख्या कीलक की थी, जो गत हो चुका है, वर्तमानमें सौम्य संवत् है, जो आगे बदल जायगा, और वर्षान्तमें साधारण ही हो जायगा ।
प्रभवादि संवत्सरबोधक चक्र
संख्या संवत्सर संख्या संवत्सर संख्या
१६ चित्रभानु
१
२
३
४
५
६ अंगिरा २१
67
प्रजापति
प्रभव
विभव १७ सुभानु
शुक्ल १८ तारण
प्रमोद
पार्थिव
भाव
८
९
१० धाता
१९
श्रीमुख २२
युवा
२०
2 a x m x 2 w 2 ↓ &
२३
२४
२५
११ ईश्वर
१२
१३
१४ विक्रम २९
१५ वृष
२६
बहुधान्य २७
प्रमाथी
भद्रबाहु संहिता
२८
३१
३२
३३
३४
३५
३६
सर्वधारी ३७
व्यय
सर्वजित्
विरोधी ३८
३९
४०
४१
४२
४३
૪૪
४५
विकृति
स्वर
नन्दन
विजय
जय
मन्मथ
३० दुर्मुख
=
शुभकृत्
शोभन
क्रोधी
विश्वावसु
पराभव
प्लवंग
कीलक
सौम्य
२४८
संवत्सर
हेमलम्बी
४६
विलम्बी ४७
विकारी
४८
शार्वरी
४९
प्लव
५०
५१
५२
५३
संख्या संवत्सर
परिधावी
प्रमादी
आनन्द
राक्षस
नल
पिंगल
मालयुक्त
सिद्धार्थी
५४ रौद्र
५५ दुर्मति
५६
दुन्दुभि
५७
रूधिरोद्वारी
५८ रक्ताक्षी
साधारण
५९
क्रोधन
विरोधकृत् ६० क्षय