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एकादशोऽध्याय:
करता है। चन्द्रमा सौम्य एवं क्रूर ग्रहोंके साथ यदि अमृतनाड़ीमें हो तो एक, तीन या सात दिनमें दो, पाँच या सातवार वर्षा होती है। इसी प्रकार चन्द्रमा क्रूर और सौम्य गहोंसे युक्त हो और जल नाड़ीमें स्थित हो तो इस योगसे आधा दिन, एक पहर या तीन दिन तक वर्षा होती है। यदि सभी ग्रह अमृत नाड़ीमें स्थित हों तो १८ दिन, जलनाड़ीमें हो तो १२ दिन और नीरा नाड़ीमें हो तो ६ दिन तक वर्षा होती है। मध्य नाड़ीमें गए हुए सब ग्रह तीन दिन तक वर्षा करते हैं। शेष नाड़ियोंमें गए हुए सब ग्रह महावायु और दुष्ट वृष्टि करते हैं। अधिक शूरग्रहोंके भोग निर्जला नाड़ियाँ भी जलदायिनी तथा क्रूर ग्रहोंके भोग से सजल नाड़ियौँ भी निर्जला बन जाती हैं। दक्षिणकी तीनों नाड़ियोंमें गए हुए ग्रह अनावृष्टि की सूचना देते हैं और ये ही क्रूरग्रह शुभ-ग्रहोंसे युक्त हों और उत्तरकी तीन नाड़ियोंमें स्थित हों तो कुछ वर्षा कर देते हैं। जलनाड़ीमें स्थित चन्द्र और शुक्र यदि क्रूर ग्रहोंसे युक्त हो जावें तो वे इस क्रूर योगसे अल्पवृष्टि करते हैं। जलनाड़ी में स्थित हुए बुध, शुक्र और बृहस्पति ये चन्द्रमासे युक्त होने पर उत्तम वर्षा करते हैं। जलनाड़ीमें चन्द्रमा और मंगल आरूढ़ हों तो वे चन्द्रभासे समागम होनेपर अच्छी वर्षा करते हैं। जलनाड़ीमें चन्द्रमा और मंगल,शनिद्वारा दृष्ट हों तो वर्षाकी कमी होती है।गमनकाल, संयोगकाल, वक्रगतिकाल, मार्गगतिकाल, अस्त या उदयकालमें इन सभी दशाओंमें जलनाड़ीमें प्राप्त हुए सभी ग्रह महावृष्टि करनेवाले होते हैं।
__ अक्षर क्रमानुसार ग्राम नक्षत्र निकालने का नियम-चू चे चो ला = अश्विनी, ली लू ले लो = भरणी, अ ई उ ए = कृत्तिका, ओ बा बी बू = रोहिणी, वे वो का की = मृगशिर, कू घ ङ छ = आर्द्रा, के को हा ही = पुनर्वसु, हू हे हो डा = पुण्य, डी डू डे डो = आश्लेषा, मा मी मू मे = मघा, मो टा टी टू = पूर्वाफाल्गुनी, टे टो पा पी = उत्तराफाल्गुनी, पू ष ण ठ = हस्त, पे पो रा री = चित्रा, रू रे रो ता - स्वाति, ती तू ते तो = विशाखा, ना नी नू ने - अनुराधा, नो या यी यू = ज्येष्ठा, ये यो भा मी = मूल, भू धा फा ढा = पूर्वाषाढ़ा, भे भो जा जी = उत्तराषाढ़ा, खी खू खे खो - श्रावण, गा गी गू गे - धनिष्ठा, गो सा सी सू = शतभिषा, से सो दा दी = पूर्वाभाद्रपद, दू थ झ ञ = उत्तराभाद्रपद, दे दो चा ची = रेवती।