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| भद्रबाहु संहिता |
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विदिक्षु चापि सर्वासु गन्धर्व नगरं यदा।
सङ्करः सर्व वर्णानां तदा भवति दारुणः ॥२३॥ (यदा) जब (गन्धर्वनगरं) गन्धर्व नगर (सर्वासु) सब (विदिक्षु) विदिशाओं में दिखे तो (सर्ववर्णानां) सभी वर्गोंका (दारुण:) दारुण रूप (शङ्करः) संमिश्रण (तदा) तब (भवति) हो जाता है।
भावार्थ-जब गन्धर्व नगर सब दिशाओंमें दिखलाई पड़े तो समझो सब जातियों का वर्ण शंकर होता है, एक-दूसरे में संमिश्रणक्ष हो जाते हैं॥२३ ।।
हिला वर लिहणं वा गन्धर्वनगरं भवेत् ।
चातुर्वर्ण्य मयं भेदं तदाऽत्रापि विनिर्दिशेत् ॥ २४॥ - यदि (गन्धर्वनगर) गन्धर्व नगर (द्विवर्ण) दो रंगो का (वा) वा (त्रिवर्ण) तीन रंगो का (भवेत्) हो तो (चातुर्वर्ण्यमयं भेदं) चारों वर्गों के जीवों में भेद (अन्नापि) यहाँ पर (विनिर्दिशेत्) का निर्देशन किया गया है।
भावार्थ-गन्धर्व नगर यदि दो रंगो का हो अथवा तीन रंगों का हो तो समझो चारों वर्गों के जीवों में भेद पड़ जायगा ऐसा निर्देशन आचार्यश्री ने कहा है।। २४॥
अनेक वर्ण संस्थानं गन्धर्व नगरं यदा। क्षुभ्यन्ते तत्र राष्ट्राणि ग्रामाश्च नगराणि च ।। २५॥ सङ्ग्रामाश्चापि जायन्ते मांस शोणित कदमा: ।
ऐतैश्च लक्षणैर्युक्तं भद्रबाहु वचो यथा ।। २६ ।। (यदा) जब (गन्धर्वनगर) गन्धर्व नगर (अनेक वर्ण संस्थानं) अनेक वर्ण और संस्थान वाला हो तो (राष्ट्राणि) देश (ग्रामाच) ग्राम (नगराणि) नगर (क्षुभ्यन्ते) क्षुभित होते हैं। (चापि) और भी (तत्र) वहाँ पर (सङ्ग्रामा:) संग्राम (मांस) मांस (शोणित) रक्तका (कर्दमाः) कीचड़ वाला (जायन्ते) होता है (एतैश्च लक्षणैर्युक्तं) इन लक्षणों से युक्त उत्पात होता है (यथा) ऐसा (भद्रबाहु वचो) भद्रबाहु स्वामी का वचन है।