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एकादशोऽध्यायः
भावार्थ-जब गन्धर्वनगर दक्षिण से फैलकर चारों तरफ फैल जावे तो राजा को अपूर्व राजधानी प्राप्त होती है।। १९ ।।
सध्वजं सपताकं वा सुस्निग्धं सु प्रतिष्ठितम्।
शांतां दिशं प्रपद्येत राज वृद्धिस्तथा भवेत् ॥२०॥ यदि गन्धर्व नगर (सध्वज) ध्वजा के समान (सपताक) पताका के समान (वा) वा (सुस्निग्ध) सुस्निग्ध (सुप्रतिष्ठितम्) और सुप्रतिष्ठित और (शांतां) शान्त रूप (दिशं) दिशाएँ दिखे तो (तथा) तथा (राजवृद्धि: भवेत्) राज वृद्धि होती है।
भावार्थ-यदि गन्र्धव नगर ध्वजा के समान, पताका के समान व सुस्निग्ध और सुप्रतिष्ठित और शान्त रूप दिशाएँ दिखे तो राजवृद्धि होती है॥२०॥
यदा चार्घनर्मिश्रं सधनैः सबलाहकम्।
गन्धर्वनगरं स्निग्धं विद्यादुदक संप्लवम् ।। २१॥ (यदा) जब (गन्धर्वनगर) गन्धर्व नगर (चाभ्रेघनर्मिश्र) बादलों से युक्त घन रूप (सघने:) सघन हो (सबलाहकम्) सबल हो (स्निग्धं) स्निग्ध हो तो (उदक) जल से धरा (संप्लवम्) प्लावित हो जाती है (विद्याद) ऐसा जानो।
भावार्थ-जब गन्धर्व नगर घन हो, बादलों से युक्त हो सघन हो सबल हो स्निग्ध हो तो यह धरा जलवृष्टि से भर जाती है, याने चारो तरफ पानी ही पानी वर्ष जाता है। नदियाँ , तालाब, सरोवरादिक जल से भर जाते है।। २१॥
सध्वज सपताकं वा गन्धर्व नगरं भवेत् ।
दीप्तां दिशं समाश्रित्य नियतं राजमृत्युदम् ॥२२॥ यदि (गन्धर्वनगर) गन्धर्व नगर (सध्वज) ध्वजाओं से सहित (सपताकं) पताकाओं से सहित (भवेत्) होता है तो (वा दीप्तांदिशं समाश्रित) दिशाएं शान्त
और पूर्व दिशा में दिखे तो (नियत) नियत रूप से (राजमृत्युदम्) राजा की मृत्यु होगी।
भावार्थ-यदि गन्धर्व नगर पताकाओं से सहित ध्वजाओं से सहित पूर्व दिशा में दिखें तो नियम रूप से राजा की मृत्यु होती है।। २२॥