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प्रस्तावना
वर्ण वाला दिखलाई पड़े तो अग्निभय होता है। गन्धर्वनगर अपनी आकृति, वर्ण, रचना सनिवेश एवं दिशाओं के अनुसार व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के शुभाशुभ भविष्य की सूचना देते हैं। शुभ्रवर्ण और सौभ्य आकृति के गन्धर्वनगर प्राय: शुभ होते हैं। शान्ति, अशान्ति, आन्तरिक उपद्रव एवं राष्ट्रों के सन्धि विग्रह के सम्बन्ध में भी गन्धर्व नगरों से सूचना मिलती है।
बारहवें अध्याय में 38 श्लोकों में गर्भधारण का वर्णन किया गया है। मेघ गर्भ की परीक्षा द्वारा वर्षा का निश्चय किया जाता है। पूर्व दिशा के मेघ जब पश्चिम दिशा की ओर दौड़ते हैं और पश्चिम दिशा के मेध पूर्व दिशा में जाती, इसी प्रकार चारों दिशाओं में मेघ पवन के कारण अदला-बदली करते रहते हैं, तो मेंघ का गर्भकाल जानना चाहिए। जब उत्तर ईशानकोण और पूर्व दिशा की वायु द्वारा आकाश विमल, स्वच्छ और आनन्दयुक्त होता है तथा चन्द्रमा और सूर्य स्निग्ध, श्वेत और बहु घेरेदार होता है, उस समय भी मेधों का गर्भधारण का समय रहता है। मेघों के गर्भधारण का समय मार्गशीर्ष-अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन है। इन्हीं महीनों में मेघ गर्भधारण करते हैं। जो व्यक्ति मेघों के गर्भधारण को पहचान लेता है, वह सरलतापूर्वक वर्षा का समय जान सकता है। यह गणित का सिद्धान्त है कि गर्भधारण के 195 दिन के उपरान्त वर्षा होती है। अगहन के महीने में जिस तिथि को मेघ गर्भधारण करते हैं, उस तिथि से ठीक 165 वें दिन में अवश्य वर्षा होती है। इस अध्याय में गर्भधारण की तिथि का परिज्ञान कराया गया है। जिस समय मेघ गर्भधारण करते हैं; उस समय दिशाएँ शान्त हो जाती हैं, पक्षियों का कलरव सुनाई पड़ने लगता है। अगहन के महीने में जिस तिथि को मेघ सन्ध्या की अरुणिमा से अनुरक्त और मण्डलाकार होते हैं, उसी तिथि को उनकी गर्भधारण क्रिया समझनी चाहिए। इस अध्याय में गर्भधारण की परिस्थिति और उस परिस्थिति के अनुसार घटित होने वाले फलादेश का निरूपण किया गया है।
तेरहवें अध्याय में यात्रा के शकुनों का वर्णन है। इस अध्याय में 186 श्लोक हैं। इसमें प्रधान रूप से राजा की विजय यात्रा का वर्णन है, पर यह विजय यात्रा सर्वसाधारण की यात्रा के रूप में भी वर्णित है। यात्रा के शकुनों का विचार सर्व साधारण को भी करना चाहिए। सर्वप्रथम यात्रा के लिए शुभमुहूर्त का विचार करना चाहिए। ग्रह, नक्षत्र, करण, तिथि, मुहूर्त, स्वर, लक्षण, व्यञ्जन, उत्पात, साधुमंगल आदि निमित्तों का विचार यात्रा काल में अवश्य करना चाहिए। यात्रा में तीन प्रकार के निमित्तों—आकाश से पतित, भूमि पर