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एकादशोऽध्यायः गन्धर्व नगरो का लक्षण व फल अथातः सम्प्रवक्ष्यामि गन्धर्व नगरं तथा।
शुभाऽशुभार्थ भूतानां निर्ग्रन्थस्य च भाषितम्॥१॥
(अथात:) अब मैं (गन्धर्वनगर) गन्धर्व नगरों का वर्णन (सम्प्रवक्ष्यामि) कहँगा (तथा) जो (भूतानां) जीवों के (शुभाऽशुभार्थ) शुभाशुभ के लिये होता है, (च) और जो (निर्ग्रन्थस्य) निर्ग्रन्थों के द्वारा (भाषितम्) कहा गया है।
भावार्थ-अब मैं निर्ग्रन्थ आचार्य द्वारा कहा गया गन्धर्व नगरों का स्वरूप फाल को कहूँ। जो जीवों के शुभ और अशुभ फल का कारण है इन गन्धर्व नगरों को देखकर स्वयं पर क्या शुभ और क्या अशुभ होगा, जान सकते है॥४॥
पूर्वसूरे यदा घोरं गन्धर्व नगरं भवेत।
नागराणां वधं विन्द्यात् तदा घोरमसंशयम् ।।२।। (यदा) जब (पूर्वसूरे) पूर्व दिशा के सूर्योदय समय में (घोरं) महान (गन्धर्व नगरं) गन्धर्व नगर (भवेत) होता है (तदा) तब (नागराणां) नगरस्थ जनोंका (वध) वध होगा (विन्द्यात्) ऐसा जानो और (घोरमसंशयम्) घोरसंशयमें पड़ जायगे।
भावार्थ—सूर्योदय के समय पूर्व दिशामें यदि गन्धर्व नगर दिखाई दे तो समझो नगरस्थ राजा व प्रजाका वध होगा, महान संकट में पड़ जायगें।। २॥
अस्तमायाति दीप्तांशो गन्धर्व: नगरं भवेत्।।
यायिनां च तु भयं विन्द्याद् तदा धोरमुपस्थितम्॥३॥ (यदा) जब (दीप्तांशी) सूर्य (अस्तमायाति) अस्त के समय (गन्धर्व नगर) गन्धर्व नगर (भवेत्) होता है (तु) तो (यायिनां) आक्रमणकारी आने वाले राजा को (तदा) तब (घोरं) घोर (भयं) भय (उपस्थितम्) उपस्थित होगा (विन्द्याद्) ऐसा जानो।