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दशमोऽध्यायः
वर्ष के आरम्भ में कृत्तिका नक्षत्र के अन्दर वर्षा हो तो समझो अनाज की हानि होती है, अतिवृष्टि वा अनावृष्टि से जनसाधारण दुःखी रहता है। इसी प्रकार प्रत्येक नक्षत्रों के अनुसार वर्षा का फल होता है स्वाति नक्षत्र में प्रथम वर्षा होने से मामूली वर्षा होती किन्तु श्रावण महीने में अच्छी वर्षा होती है ।
ग्रहों के अनुसार भी वर्षा का ज्ञान किया जाता है, सब बातों का ज्ञान होता है। जैसे प्रश्न लग्न के समय चतुर्थ स्थान में राहु और शनि हों तो उस वर्ष में घोर दुर्भिक्ष होता है। वर्षा नहीं होती। चौथे स्थान में गुरु और शुक्र हो तो वर्षा उत्तम रीति से होती है।
इन ग्रहों से पदार्थों के भाव का ज्ञान भी होता है प्रश्न लग्न में गुरू हो और एक या दो ग्रह उच्च के हो चतुर्थ सप्तम् दशम भाव में स्थित हों तो वर्ष बहुत अच्छा होता है दर्षा उत्तम होती है स त्यानुसार गेहूँ, चना, धान, जौ तिलहन, गन्ना आदि की उत्पत्ति अच्छी होती है जूट का भाव तेज होता है, जूट अच्छी पकती है व्यापारियों के लिये भी यह वर्ष उत्तम होता है इत्यादि ।
आगे डॉ. नेमी चन्द आरा का मन्तव्य दे देता हूँ ।
विवेचन — वर्षाका विचार यद्यपि पूर्वोक्त अध्ययाओंमें भी हो चुका है, फिर भी आचार्य विशेष महत्ता दिखलानेके लिए पुन: विचार करते हैं प्रथम वर्षा जिस नक्षत्रमें होती है, उसीके अनुसार वर्षाके प्रमाणका विचार किया गया है। आचार्य ऋषिपुत्रने निम्नप्रकार वर्षाका विचार किया है ।
यदि मार्गशीर्ष महीनेमें पानी बरसता है तो ज्येष्ठके महीनेमें वर्षाका अभाव रहता है। यदि पौषमासमें बिजली चमक कर पानी बरसे तो आषाढ़के महीनेमें अच्छी वर्षा होती है । माघ और फाल्गुन महीनोंके शुक्लपक्षमें तीन दिनों तक पानी बरसता रहे तो छठवें और नौवें महीनेमें अवश्य पानी बरसता है। यदि प्रत्येक महीनेमें आकाशमें बादल आच्छादित रहें तो उस प्रदेशमें अनेक प्रकारकी बीमारियाँ होती हैं। वर्षके आरम्भमें यदि कृत्तिका नक्षत्रमें पानी बरसे तो अनाजकी हानि होती है और उस वर्षमें अतिवृष्टि या अनावृष्टिका भी योग रहता है। रोहिणी नक्षत्रमें प्रथम वर्षा होने पर भी देशकी हानि होती है तथा असमयमें वर्षा होती है, जिससे फसल अच्छी नहीं उत्पन्न होती। अनेक प्रकारकी व्याधियाँ तथा अनाजकी महँगी भी इस