________________
१९९
दशमोऽध्यायः |
होती है और ग्यारह दिन-रात्रि में अथवा चौदह दिन-रात्रि में अशुभ अवश्य होगा, प्रधानमन्त्री को पीडा होगा, सुधा व्याधेि की उत्पत्ति होगी, किन्तु क्षेम सुभिक्ष और निरोगता भी बढ़ेगी दांत वाले जीवों (चूहों) का उपद्रव ज्यादा हो जायगा ।। २७-२८॥
आढकानि तु द्वात्रिंशदाायाञ्चापि निर्दिशेत्। दुर्भिक्षं व्याधिमरणं सस्यघातमुपद्रवम्॥२९॥ श्रावणेप्रथमेमासे वर्ष वा न च वर्षति ।
प्रोष्ठपदं च वर्षित्वा शेष कालं न वर्षति ॥३०॥ (आद्रायां) आद्रा नक्षत्र में वर्षा हो तो (तु) तो (द्वात्रिंशद) बत्तीस (आढ़कानि) आढ़क प्रमाण (चापिनिर्दिशेत्) वर्षा होगी ऐसा निर्दिश किया है। (दुर्भिक्षं) दुर्भिक्ष (व्याधि) रोग (मरण) मरण और (सस्यघातं) धान्यो का घात (उपद्रवम्) और उपद्रव होंगे। (श्रावणे) श्रावण (मासे) मासके (प्रथमे) प्रथम पक्ष में (वर्ष) वर्षा होती है (वा) वा, (न च) नहीं भी (वर्षति) वर्षा होती (प्रोष्ठपद) भाद्रपद (वर्षित्वा) बरसकर (च) और (शेषकालं) शेषकाल में (न) नहीं (वर्षति) बरसती है।
भावार्थ-भाद्रा नक्षत्रमें यदि वर्षा हो तो समझो बत्तीस आढ़क प्रमाण वर्षा होगी, दुर्भिक्ष होगा रोग उत्पन्न होंगे, श्रावण मास के कृष्ण पक्ष में बहुत वर्षा होती है, द्वितीया शुक्ल पक्ष में नहीं भाद्रपद मासमें भी एकादि वर्षा होती है बाकी समय में नहीं ।। २९-३०॥
आढ़कान्येकनवतिं विन्धाच्चैव पुनर्वसौ।
सस्यं निष्पधते क्षिप्रं व्याधिश्चप्रबला भवेत्॥३१॥ (पुनर्वसौ) पुनर्वसुनक्षत्र में वर्षा हो तो (अन्येक नवति) इक्कावन (आढक) आढ़क प्रमाण वर्षा होगी (चैव) और (क्षिप्रं) शीघ्र ही (सस्य) धान्योकी (निष्पद्यते) उत्पत्ति होती है (च) और (व्याधि) रोग (प्रबला) प्रबल (भवेत) होते है।
भावार्थ—पुनर्वसु नक्षत्रमें वर्षा हो तो इक्कावन आढ़क प्रमाण वर्षा होती है और धान्यो की उत्पत्ति शीघ्र हो जाती है रोगादिक प्रबल होकर भयकर रूप धारण करते है॥३१॥