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दशमोऽध्यायः
भावार्थ — यदि वर्षा पूर्वाभाद्रा नक्षा होती है तो आढक प्रमाण वर्षा होती है सब प्रकार के धान्य अच्छे होते हैं चोरों का जोर बढ़ जाता है अधिकारी लोग भी क्षुभित हो जाते हैं उनके मन में भी लोभ हो जाता है और दस रात्रि में कोई न कोई अशुभ घटना अवश्य हो जाती है ॥ १३-१४ ॥
समादिशेत् ।
सर्वसस्यं समृद्ध्यति ॥ १५ ॥ विंशद्रात्रमपग्रहः । भद्रबाहुवचो यथा ।। १६ ।। यदि वर्षा ( समादिशेत्) हो तो
(रुत्तरायां) उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में
( नवतिराढकानिस्यु ) नब्बे आढक प्रमाण वर्षा होती है (बीजं) बीजको (स्थलेषु) पृथ्वीपर (वापयेद) बोना चाहिये। (सर्व) सब ( सस्यं ) धान्यों की ( समृद्धयति ) समृद्धि होती है। (क्षेमं ) क्षेम (सुभिक्ष) सुभिक्षं (आरोग्यं) और निरोगता होती है। (विंशदात्रम् दिवसानां ) बीस रात्रि या दिनोंमें (उपग्रहः) अशुभ हो ( विजानीयाद्) ऐसा जानना चाहिये, (भद्रबाहु वचो यथा) भद्रबाहु स्वामीका ऐसा ही वचन है।
भावार्थ-यदि वर्षा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में बादल चढ़कर वर्षे तो नब्बे आढ़क प्रमाण वर्षा होगी, उसी समय बीजों का वपन कर देना चाहिये बोये गये बीजों की वृद्धि अच्छी होगी, पृथ्वी पर क्षेम आरोग्य और सुभिक्ष होगा, भद्रबाहु स्वामी का ऐसा कहना है कि उपर्युक्त सब होने पर भी बीस रात्रि या बीस दिनमें कोई न कोई अशुभ घटना अवश्य होगी ।। १५-१६॥
नवतिराढकानि स्युरुत्तरायां स्थलेषु वापयेद् बीजं क्षेमं सुभिक्षमारोग्यं दिवसानां विजानीयाद्
चतुःषष्टिमाढकानीह
रेवत्यामभिनिर्दिशेत् ।
सस्यानि च समृद्ध्यन्ते सर्वाण्येव यथाक्रमम् ॥ १७ ॥ उत्पद्यन्ते च परस्परविरोधिन: । यानयुग्या शोभन्ते बलवद्दष्ट्रि वर्धनम् ।। १८ ।।
राजान:
( रेवत्याम्) रेवती नक्षत्र को जल बरसे तो ( चतुःषष्टिमाढकानीह ) चौसठ आक प्रमाण वर्षा ( अभिनिर्दिशेत् ) होगी ऐसा निर्देश है (च) और ( सस्यानि ) धान्यो की (समृद्ध्यन्ते) वृद्धि होगी ( यथाक्रमम् सर्वाण्येव) उसी प्रकार यथा क्रमसे