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दशमोऽध्यायः
होगी, वह वर्ष सुभिक्ष से सहित होगा, इस प्रकार की वर्षा व वायु से वह वर्ष मध्यम जायगा, धान्यो की उत्पत्ति होगी और नियम से सुभिक्ष ही होगा, प्रजा सुखी हो जायगी ।। ६-७॥
श्रवणेन वारि विज्ञेयं श्रेष्ठं सस्यं च निर्दिशेत्। चौराश प्रबला ज्ञेया व्याधयोऽत्र पृथग्विधाः॥८॥ क्षेपाण्यत्रप्ररोहन्ति दष्टानां नास्ति जीवितम्।
अष्टादशाहं जानीयादपग्रहं न संशयः ॥९॥ (श्रवणेन्) श्रवण नक्षत्र में यदि (वारि) वर्षा होती है तो (विज्ञेयं) ऐसा जानना चाहिये कि, (श्रेष्ठ) अच्छी (सस्यं) धान्यकी (निर्दिशेत) उत्पति होती है ऐसा निर्देशन किया है (च) और (चौराश्च) चोरोंकी शक्ति (प्रबलाज्ञेया) प्रबल हो जायगी, और (व्याधयोऽत्र) वहाँ पर व्याधियों (पृथग्विधा:) अलग से होगी। (क्षेपाण्यत्रप्ररोहन्ति) खेतों में अंकुर अच्छे उत्पन्न होंगे, (दष्टानां जीवितम् नास्ति) चूहों का जीवन नहीं रहेगा, व (अष्टादशाह) अठारह दिनों में (अपग्रह) व्याधियोंकी उत्पत्ति (जानीयाद्) जानना चाहिये, (न संशय:) इसमें कोई संशय नहीं करना चाहिये।
भावार्थ-जब श्रवण नक्षत्र में पानी की वर्षा हो तो समझो धान्यो की उत्पत्ति अच्छी होगी, चोरों का उपद्रव बहुत बढ़ेगा, नाना प्रकार की व्याधियाँ बढ़ेगी, खेतों में धान्यों के अंकुर उत्पन्न होंगे चूहों को रोग लगेगा और मर जायेंगे और अठारह दिनों में अवश्य ही कोई रोग अवश्य फैलेगा इसमें कोई संशय नहीं करना चाहिये ।। ८-९॥
आढका निधनिष्ठायां सप्तपञ्च समादिशेत् । मही सस्यवती ज्ञेया वाणिज्यं च विनश्यति॥१०॥ क्षेमं सुभिक्षमारोग्यं सप्तरात्र भयग्रहः।
प्रबला दंष्ट्रिणो ज्ञेया मूषकाः शलभाः शुकाः॥११॥ (धनिष्ठायां) धनिष्ठा नक्षत्रमें यदि वर्षा हो तो (सप्तपञ्च आढकानि) सत्तावन आढ़क प्रमाण वर्षा (समादिशेत्) कही गई है (महीसस्यवती) पृथ्वी धान्यों से युक्त (ज्ञेया) जानना चाहिये (च) और (वाणिज्य) व्यापारादिक (नश्यति) नष्ट हो जाते