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भद्रबाहु संहिता
सब ( सस्यानि ) प्रकार के धान्य ( निरुपद्रवम्) निरुपद्रवरूप (निष्पद्यन्ते) उत्पन्न होते
है।
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भावार्थ ---- ग्रीष्म ऋतु की आषाढ़ मासके शुक्लपक्षकी प्रतिपदा को पूर्वाषाढा नक्षत्र में यदि पश्चिम दिशा से बादल उठकर वर्षा होती है तो समझो चौसठ आढ़क प्रमाण वर्षा होती है और सब धान्य निरुपद्रव रूप उत्पन्न होती है ।। ३-४ ॥ प्रणश्यति ।
धर्मकामार्था वर्तन्ते पर चक्रं क्षेमं सुभिक्षमारोग्यं दशरात्रं त्वपग्रहम् ।। ५ ।।
उपर्युक्त प्रवर्षण से ( धर्मकामार्थ) धर्म, काम, अर्थकी सिद्धि ( वर्तन्ते) देखी जाती है और (क्षेमं सुभिक्षमारोग्यं) क्षेम, सुभिक्ष और आरोग्य का कारण होता है, ( परचक्रं प्रणश्यति) पर राजा नगरस्थ राजा को प्रणाम करता है, (दक्षरात्र) दशरात्रि में (त्वपग्रहम् ) भय उत्पन्न होता है ।
भावार्थ — उपर्युक्त प्रकार की वर्षा हो तो समझो धर्म, अर्थ, काम की जनता को सिद्धि होगी और क्षेम होगा, सुभिक्ष होगा, निरोगता बढ़ेगी और दस दिन में किंचित भय भी उपस्थि होगा लेकिन अवश्य ही परचक्र को राजा प्रणाम करेगा ॥ ५ ॥
प्रवर्षति ।
उत्तराभ्यामाषादाभ्यां यदा देवः विज्ञेया द्वादश द्रोणा अतो वर्षं सुभिक्षदम् ॥ ६॥ तदानिम्नानि वातानि मध्यभं वर्षणं भवेत् । सस्यानां चापि निष्पत्ति: सुभिक्षं क्षेम मेव च ॥ ७ ॥
( यदा) जब (देव:) इन्द्र (उत्तराभ्यामाषादाभ्यां ) उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में (प्रवर्षति ) बरसता है तो समझो ( द्वादशद्रोणा ) बाहर द्रोण प्रमाण वर्षा होगी ऐसा ( विज्ञेया ) जानना चाहिये ( अतो) वह ( वर्षं) वर्ष (सुभिक्षदम् ) सुभिक्ष वाला है । ( तदा) तब (निम्नानि) निम्नप्रकार के (वातानि) वायु से, (वर्षणं) वर्षा ( मध्यमं ) मध्यम ( भवेत् ) होती है। ( सस्यानां चापि निष्पति) धान्यो की उत्पति होती है (सुभिक्षं क्षेम मेव च) और निश्चित रूप से क्षेमकुशल सुभिक्ष होगा ही ।
भावार्थ — यदि उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में वर्षा होती है तो बारह द्रोण प्रमाण वर्षा