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माऽध्यायः
भावार्थ- जब राजा की सेना में अनुलोम रूप सुगन्धित वायु चले तो राजा को प्रयत्न किये बिना ही विजय प्राप्त होता है।।१५१॥
प्रतिलोमो यदाज्नीके दुर्गन्धो वाति मारुतः।
यदा यत्नेन साध्यन्ते वीर कीर्ति सुलब्धयः॥५२॥ (यदानीके) जब सेनामें (दुर्गन्धो) दुर्गन्धित (मारुत:) हवा (वाति) चले और वो भी (प्रतिलोमो) प्रतिलोम रूप हो तो (यदा) जब (यत्नेन) महान प्रयत्न किया जाता है तब (सुलब्धय:) प्राप्त होने वाली (वीर कीर्ति) वीर कीर्ति (साध्यन्ते) प्राप्त होती है।
भावार्थ-यदि वायु प्रतिलोम हो दुर्गन्धित हो, ऐसी वायु सेना के अन्दर चले तो वीर कीर्ति कष्ट साध्य होती है, याने बड़ा प्रयत्न किये जाने पर वीरकीर्ति प्राप्त होती है।। ५२॥
यदा सपरिघा सन्ध्या पूर्वोवात्यनिलो भृशम् ।
पूर्वस्मिन्नेव दिग्भागे पश्चिमा बध्यते चमूः ॥५३॥ (यदा) जब (सपरिघा) परिघा सहित (अनिलो) वायु सायंकाल को या (पूर्वोवात्य) प्रात:काल में चले तो (पूर्वस्मिन्नेव) पूर्व की ही (दिग्भागे) दिशा में (पश्चिमा) पश्चिम दिशाकी (चमू:) सेनाका (बध्यते) वध हो जायेगा।
भावार्थ-जब सन्ध्या परिघा सहित हो वायु प्रात:काल में सन्ध्या को अतिशीघ्र चले तो पूर्व दिशा में ही पश्चिम दिशाकी सेना का नाश हो जायगा ।। ५३ ।।
यदा सपरिघा सन्ध्या पश्चिमो वाति मारुतः।
अपस्मिन् दिशो भागे पूर्वा सा वध्यते चमूः ॥५४॥ (यदा) जब (सन्ध्या ) सन्ध्या (सपरिघा) परिघा से युक्त हो (मारुत:) वायु (पश्चिमो) पश्चिम में (वाति) चले तो (अपरस्मिन् दिशोभागे) अपर दिशा भाग में ही (पूर्वा) पूर्व दिशामें (सा) वह (चमू:) सेना (वध्यते) मारी जाती है।
भावार्थ-जब सन्ध्या परिघा से युक्त हो और वायु पश्चिम की हो तो पूर्व दिशा के सेना पश्चिम में मारी जाती है।। ५४ ।।