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भद्रबाहु संहिता
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(वायुः) वायु (आषाढीपूर्णिमायां) आषाढ़ीपूर्णिमां को (पूर्वदक्षिणः) पूर्व और दक्षिण कोणकी (स्यात्) होवे (तु) तो (राजमृत्युः) राजा की मृत्यु (विजानीय:) जानना चाहिये (सस्य) धान्य (तथा) तथा (जलम्) जल (चित्रं) विचित्र रहेंगे।
भावार्थ-यदि वायु अग्नि कोणमें आषाढीपूर्णिमा को चले तो समझो देश के राजा की मृत्यु होगी, वर्षा और धान्य भी चित्र-विचित्र रहेंगे॥१८॥
क्वचिनिष्पद्यतेसस्यं क्वचिच्चापि विपद्यते।
धान्यार्थो मध्यमो ज्ञेयः तदाऽग्नेश्च भयं नृणाम् ॥१९॥ (कचिनिष्पद्यतेसस्य) कहीं पर धान्य की उत्पत्ति होती है तो (क्वचिच्चापि विपद्यते) कहीं पर धान्य के ऊपर आपत्ति आती है (धान्यार्थो) धान्य के अर्थी को (मध्यमो) मध्यम लाभ होगा (ज्ञेय:) ऐसा जानना चाहिये (तदा) वहाँ (नृणाम्) मनुष्यों को (अग्नेश्च भयं) अग्नि भय होगा।
___ भावार्थ-यदि अग्नि कोण की वायु आषाढ़ पूर्णिमा को चले तो कहीं पर धान्य की उत्पत्ति होती है तो कहीं पर धान्य के ऊपर आपत्ति आती है धान्य के पाने के इच्छुक को मध्यम लाभहोगा, और मनुष्यों को अग्निभय उत्पन्न होगा ।। १९ ।।
नैर्ऋतत्यकोण की वायुका फल आषाढ़ी पूर्णिमायां तु वायुः स्याद् दक्षिणापरः।।
सस्यानामुपघाताय चौराणां तु विवृद्धये ।। २०॥ (आषाढ़ी पूर्णिमायां) आषाढ़ की पूर्णिमाको (वायुः) वायु (दक्षिणापर:) नैर्ऋत्यकोण की (स्याद्) होवे (तु) तो (सस्यानामुपघाताय) धान्यो के घात का कारण होता है और (चौराणां) चौरों की (विवृद्धये) वृद्धि होती है।
भावार्थ-यदि वायु आषाढ़ पूर्णिमा को नैर्ऋत्य कोण से चले तो समझो चौरों का उपद्रव विशेषरीति से होगा, और धान्यो का घात का कारण बनेगा, अर्थात् सब प्रकार के धान्य नाश हो जायगा ।। २०॥
भस्मांशुरजस्कीर्णा यदा भवति मेदिनी। सर्व त्यागं तदा कृत्वा कर्तव्यो धान्य संग्रहः ॥२१॥