________________
नवमोऽध्यायः
यदि वायु आषाढीपूर्णिमा को (पूर्वार्धदिवसौ) दिन के पहले पहरसे दूसरे पहर तक चले तो (पूर्वमासौ सोदको) पहले के दो मासमें वर्षा होगी (पश्चिमेपश्चिमौज्ञेयो) दिन के तीसरे पहर से वायु चालू होकर चौथे पहर तक याने पश्चिम भाग में चले तो, पिछले दो महीने में (द्वावपि) आश्विन और कार्तिकमें (सोदकौ) वर्षा होगी।
भावार्थ-यदि वायु आषाढ़ी पूर्णिमां के पहले और दूसरे भाग में चले तो श्रावण और भाद्र मास में वर्षा अच्छी होगी, यदि पिछले तीसरे और चौथे भाग में वायु चले तो समझो आश्विन और कार्तिक मासमें वर्षा अच्छी होगी, प्रत्येक क्रम इसी तरह वायु के अनुसार वर्षा का क्रम जान लेना चाहिये ।।१०।।
हित्वा पूर्वं तु दिवसं मध्याह्ने यदि वाति चेत्।
वायुर्मध्यममासात्तु तदादेवो न वर्षति ॥११॥ (यदि) यदि (वाति) वायु (दिवस) दिनके (पूर्व) पूर्व भागको (हित्वा) छोड़कर (मध्याह्ने) मध्याह्नमें चले (तु) तो (वायु:) वह वायु (मध्यम मासातु) मध्य के महीनेमें (देवो न वर्षति) वर्षा नहीं करती है।
भावार्थ-यदि वायु दिनके पूर्व भागको छोड़कर मध्याह्र में चले तो वह वायु मध्य के महीने में वर्षा नहीं करायेगी॥११॥
आषाढ़ी पूर्णिमायां तु दक्षिणो मारुतो यदि ।
न तदा वापयेत् किञ्चित् ब्रह्मक्षत्र च पीडयेत्॥१२॥ (यदि) यदि (मारुतो) वायु (आषाढ़ी) आषाढ़ मास को (पूर्णिमायां) पूर्णिमा को (दक्षिणो) दक्षिण दिशासे चले (तु) तो (तदा) तब (किञ्चित्) कुछ भी (न) नहीं (वापयेत्) बीज बोने चाहिये (च) और वह (ब्रह्मक्षत्र) ब्राह्मण व क्षत्रियों को (पीडयेत्) पीडाकारक है।
भावार्थ-दक्षिण दिशा से यदि वायु आषाढ़ी पूर्णिमा को चले तो समझो वर्षा नहीं होगी इसलिये बीज बोने के कार्य नहीं करना चाहिये ये वायु ब्राह्मण और क्षत्रियों को पीड़ा पहुँचाने वाली होती है॥१२ ।।