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भद्रबाहु संहिता
अनावृष्टि रूक्षायां
( दृश्यन्ते) दिखाई दे तो ( भयम्) भय ( उपस्थितम् ) उपस्थित होगा ऐसा (आख्यान्त्य) कहा गया है।
भावार्थ - यदि सन्ध्या द्विपदा याने क्रूर मनुष्य, चार पाँव वाले पशुओं के आकार भयंकर पक्षियों के आकार दिखाई दे तो समझो कोई न कोई भय अवश्य
उपस्थित होगा || २२ ॥
भयं रोगं विकृतायां
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दुर्भिक्षं राजविद्रवम् । सन्ध्यामभिनिर्दिशेत ॥ २३ ॥
च
यदि ( सन्ध्यां ) रूक्ष (च) और ( विकृतायां ) विकृत रूप दिखाई दे तो, ( अनावृष्टि) वर्षा का नहीं होना (भय) भयको ) रोगको (दुर्धियां) दुर्भिक्ष और (राजविद्रवम्) राजउपद्रव होगा ( अभिनिर्दिशेत ) ऐसानिर्दिश किया है।
भावार्थ-यदि सन्ध्या रूक्ष, विकृत रूप दिखलाई पड़े तो समझो अनावृष्टि यानि वर्षा का अभाव, भय कोई भय होगा, रोग, याने नाना प्रकार का रोग उत्पन्न होगा, दुर्भिक्ष याने दुर्भिक्ष पड़ जायेगा, नहीं तो राजा का ही उपद्रव हो जायेगा ऐसा आचार्य श्री ने कहा है ॥ २३ ॥
च
विंशतिर्योजनानि स्युर्विद्युद्धाति ततोऽधिकं तु स्तनितं अभ्रं यत्रैव दृश्यते ॥ २४ ॥
सुप्रभा ।
पञ्चयोजनिका सन्ध्या वायुवर्षं च
दूरतः ।
त्रिरात्रं सप्तरात्रं च सद्यो वा पाकमादिशेत् ।। २५ ।। (विंशतिर्योजनानि ) बीस योजन दूर यदि ( स्युर्विद्युद्भाति) बिजली की चमक
(च) और (अभ्रं) बादल को ( दृश्यते) दिखता है तो, (ततोऽधिकं) उतने ही अधिक दूर वर्षा या वायु होगा। (पञ्च योजनिकां) पांच योजन तक ( सन्ध्या) सन्ध्या दिखाई दे तो, (वायु) वायु (च) और (वर्ष) वर्षा तभी ( दूरतः ) दूर होगी, (च) और इसका फल ( त्रिरात्रं) तीन रात्रि (वा) वा ( सप्तरात्रं) में (सद्यो) नित्य ऐसा ही (पराकमादिशेत् ) फल होगा।
भावार्थ — यदि बादल, सन्ध्या, बिजली का चमकना बीस योजन याने ८०