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भद्रबाहु संहिता
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बादलों के (ग्रतो) आगे ( सभ्राणि) प्रभा सहित ( सरश्मीनि) रश्मियां ( भवेत् ) होती है (तानि) उसीको ( सन्ध्या) सन्ध्या (विनिर्दिशेत् ) कहा गया हैं ।
भावार्थ- सूर्यके उदय और अस्त के समय जो बादल प्रभा से युक्त और रश्मियों वाला होता है लाल पीली रश्मियाँ होती है, उसीको आचार्य ने सन्ध्या कहा है, ये सन्ध्याऐं नियम से सूर्य के उदय समय में या अस्त समय में होती है॥ १०॥
अभ्राणां यानि रूपाणि सौम्यानि विकृतानि च । सर्वाणि तानि सन्ध्यायां तथैव प्रतिवारयेत् ॥ ११ ॥
(यानि) यानि जो (अभ्राणां) बादलों के (रूपाणि) रूपस्वरूप (सौम्यानि) सौम्य (च) और विकृत दिखते हैं (तानि) उन (सर्वाणि) सबको (सन्ध्यायां) सन्ध्या के लक्षणों में (तथैव) उसी प्रकार (प्रतिवारयेत् ) ले लेना चाहिये ।
भावार्थ — जो बादलों के लक्षण आचार्यों ने लिखे है, उसी प्रकार यहाँ सन्ध्याओं के लक्षण भी समझना चाहिये, बादलों के जो फल होते है उसी प्रकार सन्ध्याके लक्षण व फल होते है बुद्धिमान निमित्तज्ञ बादलों के फल के अनुसार सन्ध्या का फल और लक्षण लगा लेता है ।। ११ ।।
एवमस्तमने काले या सन्ध्या सर्व
उच्यते । लक्षणं यत् तु सन्ध्यानां शुभं वा यदि वाऽशुभम् ।। १२ ।। (एवम्) इस प्रकार (अस्तमनेकाले) सूर्य के अस्तकाल में (या) जो (सर्व) सब प्रकार का ( सन्ध्या) सन्ध्या (उच्यते ) कही गई है और उनके लक्षण कहे गये है (यत्) उसी प्रकार सूर्योदय की सन्ध्या का ( लक्षणं) लक्षण कहे गये है (तु) इसलिये ( सन्ध्यानां ) सन्ध्याओं का ( शुभं वा ) शुभ या (यदि वाऽशुभम् ) यदि अशुभ, उसी प्रकार समझे।
भावार्थ - जिस प्रकार सूर्यअस्तके समयकी सन्ध्या का लक्षण या फल कहा गया है उसी प्रकार सूर्योदय की सन्ध्याओं के लक्षण व फल समझना चाहिये, दोनों में कोई अन्तर नहीं होता है ॥ १२ ॥