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भद्रबाहु संहिता
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उद्गच्छमाने चाऽदित्ये रक्ता सन्ध्या यदा भवेत्।
पूर्वेण च गता सौम्या क्षत्रियाणां जयावहा॥४॥ (यदा) जब (उद्गच्छमाने) उदय होते हुऐ (चाऽदित्ये) सूर्य की (सन्ध्या) सन्ध्या (रक्ता) लाल (भवेत्) होती है (च) और वो भी (पूर्वेण) पूर्व में हो (सौम्या) सौम्य हो तो (क्षत्रियाणां) क्षत्रियों की (जयावहा) जय कराती है।
भावार्थ- यदि उदित सूर्यकी सन्ध्या लाल और सौम्य व पूर्व में हो तो समझो क्षत्रियों की विजय होगी॥४॥
उद्गच्छमाने चाऽदित्ये पीता सन्ध्या यदा भवेत्।
दक्षिणेन गता सौम्या वैश्यानां सा जयावहा॥५॥ (यदा) जब (उद्गच्छमाने) उदय होते हुऐ (चाऽदित्ये) सूर्यकी (सन्ध्या) सन्ध्या (पीता) पीली (भवेत्) होती है (सा) वो (सौम्या) सौम्य हो (दक्षिणेन गता) दक्षिणदिशा में हो तो (वेश्यानां) वैश्यों की (जयवहा) जय कराती हैं।
भावार्थ-जंब उदय होते हुऐ सूर्य की सन्ध्या पीली हो सौम्य हो दक्षिण की हो तो समझो वैश्यों की विजय होगी॥५॥
उद्गच्छमाने चाऽदित्ये कृष्णसन्ध्या यदा भवेत्।
अपरेणगता सौम्या शूद्राणां च जयावहा ।।६।। (यदा) जब (उद्गच्छमाने) उदय होते हुऐ (चाऽदित्ये) सूर्यकी (सन्ध्या) सन्ध्या (कृष्ण) काली (भवेत्) होती है (सौम्या) सौम्य हो (च) और (अपरेणगता) पश्चिमदिशामें हो तो (शूद्राणां) शूद्रोको (जयावहा) जय कराती है।
भावार्थयदि उगते हुऐ सूर्य की सन्ध्या काली हो सौम्य हो और पश्चिम में हो तो समझो वहाँ पर शूद्रों की विजय होगी॥६॥
सन्थ्योत्तरा जयं राज्ञः ततः कुर्यात् पराजयम्।
पूर्वा क्षेमं सुभिक्षं च पश्चिमा च भयङ्करा ॥७॥ (उत्तरा) उत्तर की (सन्ध्या) सन्ध्या (राज्ञः) राजाकी (जयं) जय कराती है (ततः) उसी प्रकार दक्षिण की (पराजयम) पराजय (कुर्यात्) कराती है (पूर्वा) पूर्वकी