________________
भद्रबाहु संहिता
तेज धूप हो तो श्रावण मासमें वर्षाकी सूचना समझनी चाहिए। भरणी नक्षत्र हो तो इसका फलादेश अत्यन्त अनिष्टकर होता है। फसल में अनेक प्रकार के रोग लग जाते हैं तथा व्यापारमें भी हानि होती है। आषाढ़ कृष्णा नवमीको पर्वताकार बादल दिखलाई पड़े तो शुभ, ध्वजा-घण्टा-पताकाके आकारमें बादल दिखलाई पड़े तो प्रचुर वर्षा और व्यापारमें लाभ होता है तथा आन्तरिक गृह कलहके साथ अन्य शत्रु राष्ट्रोंकी ओरसे भी भय होता है। यदि तलवार, त्रिशूल, भाला, बर्ची आदि अस्त्रोंके रूपमें बादलोंकी आकृति उक्त तिथिको दिखलाई पड़े तो युद्धकी सूचना समझनी चाहिए। यदि आषाढ़ कृष्ण दशमीको उखड़े हुए वृक्षकी आकृतिके समान बादल दिखलाई पड़े तो वर्षाका अभाव तथा राष्ट्रमें नाना प्रकारके उपद्रवोंकी सूचना समझनी चाहिए। आषाढ़ कृष्ण एकादशीको रुधिर वर्णके बादल आकाशमें आच्छादित हों तो आगामी वर्ष प्रजाको अनेक प्रकारका कष्ट होता है तथा खाद्य पदार्थों की कमी होती है। आषाढ़ कृष्ण द्वादशी और त्रयोदशीको पूर्व दिशाकी ओरसे बादलों का एकत्र होना दिखलाई पड़े तो फसलकी क्षति तथा वर्षाका अभाव और चतुर्दशीको ग़र्जन-तर्जनके साथ बादल आकाशमें व्याप्त हुए दिखलाई पड़ें तो श्रावणमें सूखा पड़ता है। आमावस्याको वर्षा होना शुभ है और धूप पड़ना अनिष्टकारक है। शुक्ला प्रतिपदाको मेघोंका एकत्र होना शुभ, वर्षा होना सामान्य
और धूप पड़ना अनिष्टकारक है। शुक्ला द्वितीया और तृतीयाको पूर्वमें मेघोंका एकत्रित होना शुभ सूचक है।
इति श्री पंचम श्रुत केवली दिगम्बराचार्य भद्रबाहु स्वामी विरचित भद्रबाहु संहिता का विशेष वर्णन बादलों का लक्षण व फलों का वर्णन करने वाला पष्टम. अध्याय का हिन्दी भाषानुवाद करने वाला क्षेमोदय टीका समाप्त इति षष्टम अध्याय
समाप्त।
(इति षष्ठोऽध्यायः समाप्त:)