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भद्रबाहु संहिता
है, मास के अनुसार इन बादलों का विशेष फल होता है आचार्य श्री ने ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी से आषाढ़ शुक्ल नवमी तक बादलों का विशेष फल वर्णन किया है नक्षत्रों के अनुसार भी फल होता है अमुक महीने अमुक तिथी को अमुक नक्षत्र में अमुक दिशा में बादल अमुक वर्ण के व अमुक आकार के हो तो उसका फल अच्छा या बुरा मालूम होता है ये शुभाशुभ जानने में निमित्त कारण हैं।
जैसे ज्येष्ठ शुक्ल सप्तमी शनिवार आश्लेषा नक्षत्र के दिन यदि बादल श्वेत रंग धारण किये हुऐ दिखे तो उत्तम है देश के उन्नत होने की सूचना देता है।
इसी प्रकार वस्तुएँ महँगी होगी या सस्ती होगी ये भी इन बादलों के संचार से देखा जाता है।
आचार्यों ने लिखा है की मेघपटल कैसे हैं यह देखकर सभी प्रकार का भविष्य ज्ञान, कर सकते है मात्र बादलों के विषय में पूर्ण ज्ञान होना चाहिये।
विवेचन-आकाशमें बादलोंके आच्छादित होनेसे वर्षा, फसल, जय, पराजय, हानि, लाभ आदिके सम्बन्धमें जाना जाता है। यह एक प्रकारका निमित्त है, जो शुभ-अशुभकी सूचना देता है। बादलोंकी आकृतियाँ अनेक प्रकार की होती हैं। कतिपय आकृतियाँ पशु-पक्षियों के आकारकी होती हैं और कतिपय मनुष्य, अस्त्र-शस्त्र एवं गेंद, कुर्सी आदिके आकार की भी। इन समस्त आकृतियोंको फलकी दृष्टिसे शुभ और अशुभ इन दो भागोंमें विभक्त किया गया है। जो पशु सरल, सीधे और पालतू होते हैं, उनकी आकृति के बादलोंका फल शुभ और हिंसक, क्रूर, पुष्ट जंगली जानवरों की आकृतिके बादलों का फल निकृष्ट होता है। इसी प्रकार सौम्य मनुष्य की आकृतिके बादलोंका फल शुभ और क्रूर मनुष्योंकी आकृतिके बादलोंका फल निकृष्ट होता है। अस्त्र-शस्त्रोंकी आकृतिके बादलोंका फल साधारणतया अशुभ होता है। स्निग्ध वर्णके बादलोंका फल उत्तम और रूक्ष वर्णके बादलोंका फल सर्वदा निकृष्ट होता है।
पूर्व दिशामें मेघ गर्जन-तर्जन करते हुए स्थित हों तो उत्तम वर्षा होती है तथा फसल भी उत्तम होती है। उत्तर दिशामें बादल छाये हुए हों तो भी वर्षाकी सूचना देते हैं। दक्षिण और पश्चिम दिशामें बादलोंका एकत्र होना वर्षावरोधक होता है। वर्षाका विचार ज्येष्ठकी पूर्णिमाकी वर्षासे किया जाता है। यदि ज्येष्ठकी पूर्णिमाके