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| भद्रबाहु संहिता
धनुषां कवचानां च बालानां सहशानि च।
खण्डान्यभ्राणि रूक्षाणि सभामं तेषु निर्दिशेत् ॥ १५ ।। (अभ्राणि) बादल यदि, (धनुषां) धनुष, (कवचानां) कवच (च) और (बालानां) पशुओं के पुंछ के (सदृशानि) आकार होकर वो भी (रूक्षाणि) रूक्ष व (खण्डान्य) खंड-खंड राजा के आगे दौड़े तो (तेषु) वहाँ पर (संग्राम) युद्ध (निर्दिशेतु) का निर्देश करते हैं।
भावार्थ-यदि युद्ध के प्रयाण में राजा के आगे-आगे बादल धनुष के आकार कवच के आकार पूंछ के आकार खण्ड-खण्ड होकर रूक्ष हो तो समझो वहाँ पर संग्राम (युद्ध) अवश्य होगा ॥१५॥
नानारूप प्रहरणैः सर्वे यान्ति परस्परम् ।
सङ्ग्रामं तेषु जानीयादतुलं प्रत्युपस्थितम्।।१६।। यदि बादल (नानारूप) नानाप्रकार के रूप को (प्रहरणैः) धारण कर (सर्वे) सब बादल (यान्ति) यदि जावे तो (तेषु) वहाँ पर (सङ्ग्राम) अवश्य संग्राम (जानीयाद्) होगा ऐसा जानना चाहिये, (अतुलं) बहुत ही (प्रत्युपस्थितम्) ऐसा अवसर उपस्थित होगा।
___भावार्थ-यदि बादल नाना प्रकार के रूप धारण कर परस्पर टकरावे तो समझो वहाँ पर युद्ध का अवसर अवश्य उपस्थित होगा, राजा और प्रजा को समझ लेना चाहिये॥१६॥
अभ्र वृक्षं समुच्छाध योऽनुलोमसमं व्रजेत्।
यस्य राज्ञो वधस्तस्य भद्रबाहु वचो यथा ।। १७॥ (अभ्र वृक्षं) बादल वक्ष के समान (समुच्छाद्य) उखड़ते हुऐ (योऽनुलोम सम) जो अनुलोम के सदृश (व्रजेत्) दिखाई दे तो, (यस्य) जो राजा युद्ध के लिए चलता है (तस्य) उसका (वधः) वध अवश्य होगा। (यथा) ऐसा (भद्रबाहुवाचो) भद्रबाहु स्वामी का वचन है।
भावार्थ-यदि बादल वृक्षके उखड़ते हुऐ दिखे और अनुलोम के समान