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षष्ठोऽध्यायः
बादलों का लक्षण अभ्राणां लक्षणं कृत्स्नं प्रवक्ष्यामि यथाक्रमम्।
प्रशस्तमप्रशस्तं च तन्निबोधत तत्त्वतः॥१॥ (यथाक्रमम्) यथाक्रमसे (अभ्राणां) बादलों के (लक्षणं) लक्षण को (कृत्स्नं) अच्छी तरह से (प्रवक्ष्यामि) कहूँगा वो (प्रशस्तं) शुभ (च) और (अप्रशस्तं) अशुभ रूप है, (तन्नि) उसको (बोधत) ज्ञान (तत्त्वतः) करो।
भावार्थ-अब यथाक्रम से बादलों का लक्षण अच्छी तरह से कहूँगा वो बादल प्रशस्त शुभ और अप्रशस्त अशुभ रूप दोनों ही तरह के होते है, जब शुभ लक्षण बादलों के होते हैं तब शुभ फल देते हैं, और अशुभ लक्षण दिखते हैं तो समझो अशुभ फल देंगे॥१॥
स्निग्धान्यभ्राणि यावन्ति वर्षदानि न संशयः ।
उत्तरं मार्गमाश्रित्य तिथौ मुखे यदा भवेत्।।२।। (यावन्ति) जितने भी (स्निग्धान्य भ्राणि) चिकने बादल होते है वो (वर्षदागि अवश्य बरषते है (न संशय:) उसमें कोई संशय नहीं है, (उत्तरं मार्ग) उत्तरदिशा को (आश्रित्य) आश्रित कर आने वाले बादल (तिथौ) तिथि के (मुखे यदा) मुखपर (भवेत्) होते हैं।
भावार्थ-जितने भी चिकने बादल होकर आते है तो वो बादल अवश्य वर्षा करेगें, उसमें कोई संशय नहीं करना चाहिये, ये समझो जब भी उत्तरदिशा से उठकर आने वाले बादल भी तिथि के प्रात:काल में अवश्य वर्षा करेंगे॥२॥
उदीच्यान्यथ पूर्वाणि वर्षदानि शिवानि च।
दक्षिणाण्यपराणि स्युः समूत्राणि न संशयः ॥३॥ (अथ) अथ (उदीच्यान्य) उत्तरदिशाके (च) और (पूर्वाणि) पूर्व के बादल