________________
चतुर्थोऽध्यायः
एक मण्डल में ही श्वेतवर्ण और हरित वर्ण मिश्रित परिवेष दिखलाई दे तो प्रचुर वर्षा, तीन मण्डल में परिवेष दिखलाई दे तो दुष्काल, वर्षा का अभाव और चार मण्डल में परिवेष दिखलाई पड़े तो फसल में कमी और दुर्भिक्ष, वर्षा ऋतु के चारों महीनों में अल्पवृष्टि और अन्न की कमी होती है। आषाढ़ कृष्ण द्वितीया को चन्द्रोदय होते हरित और रक्तवर्ण मिश्रित परिवेष दिखलाई पड़े तो पूरी वर्षा होती है। तृतीया को चन्द्रोदय के तीन घड़ी बाद यदि लाल वर्ण का एक मण्डलवाला परिवेष दिखलाई पड़े तो निश्चयतः अधिक वर्षा होती है। नदी-नाले जल से भर जाते हैं। श्रावण के महीनों में वर्षा की कुछ कमी रहती है, फिर भी फसल उत्तम होती है। यदि इसी तिथि को मध्य रात्रिके उपरान्त परिवेष दो मण्डलवाला दिखलाई पड़े तो वर्षाका अभाव, कृषिमें गड़बड़ी और सभी प्रकारकी फसलों में रोगादि लग जाते हैं। चतुर्थी तिथि को चन्द्रोदय के साथ ही परिवेष दिखलाई पड़े तो फसल उत्तम होती है और वर्षा भी समयानुकूल होती है, यदि इसी दिन चन्द्रोदय के चार-पाँच घड़ी उपरान्त परिवेष दिखलाई पड़े तो वर्षा का भादों मास में अभाव ही समझना चाहिए। उपर्युक्त प्रकारका परिवेष फसल के लिए भी अनिष्टकारक होता है।
आषाढ़ कृष्ण पंचमी, षष्ठी और सप्तमी को चन्द्रास्त कालमें विचित्र वर्ण का परिवेष दिखलाई पड़े तो निश्चयत: अल्पवर्षा होती है। अष्टमी तिथि को चन्द्रोदय काल में ही परिवेष दिखलाई पड़े तो वर्षा प्रचुर परिमाण में तथा फसल उत्तम होती है। अष्टमीके उपरान्त कृष्ण पक्षकी अन्य तिथियों में अस्त या उदय काल में चन्द्रपरिवेष दिखलाई पड़े तो वर्षा की कमी ही समझनी चाहिए। फसल भी सामान्य ही होती
है।
आषाढ़ शुक्ला द्वितीयाको चन्दोदय होते ही परिवेष घेर ले तो अगले दिन नियमत: वर्षा होती है। इस परिवेषका फल तीन दिनों तक लगातार वर्षा होना भी है। आषाढ़ शुक्ला तृतीया को चन्द्रोदयके तीन घड़ी भीतर ही विचित्र वर्णका परिवेष चन्द्रमाको घेर ले तो नियमत: अगले पाँच दिनों तक तेज धूप पड़ती है, पश्चात् हल्की वर्षा होती है। आषाढ़ शुक्ला चतुर्थी को चन्द्रोदय काल में ही परिवेष रक्तवर्णका हो तो आषाढ़ मासमें सूखा पड़ता है और श्रावणमें वर्षा होती है। आषाढ़ी पूर्णिमाको लालवर्णका परिवेष दिखलाई पड़े तो यह सुभिक्षका सूचक है, इस वर्ष