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भद्रबाहु संहिता
शुक्र परिवेष में हो तो क्षत्रियोंको कष्ट एवं देशमें अशान्ति और शनि परिवेषमें हो तो देशमें चोर, डाकुओंका उपद्रव वृद्धिगत हो तथा साधु, सन्यासियोंको अनेक प्रकारके कष्ट हों। केतु परिवेषमें हो तो अग्निका प्रकोप तथा शस्त्रादिका भय होता है। परिजनों को ग्रह हों तो कृषिके लिए हानि, हर्षाका अभाव, अशान्ति और साधारण जनताको कष्ट; तीन ग्रह परिवेषमें हों तो दुर्भिक्ष, अन्नका भाव महँगा
और धनिकवर्गको विशेष कष्ट; चार ग्रह परिवेषमें हों तो मन्त्री, नेता एवं किसी धर्मात्माकी मृत्यु और पाँच ग्रह परिवेषमें हों तो प्रलयतुल्य कष्ट होता है। यदि मंगल बुधादि पाँच ग्रह परिवेषमें हों तो किसी बड़े भारी राष्ट्रनायक की मृत्यु तथा जगत् में अशान्ति होती है। शासन परिवर्तनका योग भी इसीके द्वारा बनता है। यदि प्रतिपदासे लेकर चतुर्थी तक परिवेष हो तो क्रमानुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रोंको कष्टसूचक होता है। पञ्चमीसे लेकर सप्तमी तक परिवेष हो तो नगर, कोष एवं धान्यके लिए अशुभकारक होता है। अष्टमीको परिवेष हो तो युवक, मन्त्री या किसी बड़े शासनाधिकारी की मृत्यु होती है। इस दिनका परिवेष गाँव
और नगरोंकी उन्नतिमें रुकावटकी भी सूचना देता है। नवमी, दशमी और एकादशीमें होने वाला परिवेष नागरिक जीवनमें अशान्ति और प्रशासक या मण्डलाधिकारी की मृत्युकी सूचना देता है। द्वादशी तिथिमें परिवेष हो तो देश या नगर में घरेलू उपद्रव, त्रयोदशी में परिवेष हो तो शस्त्र का क्षोभ, चतुर्दशी में परिवेष हो तो नारियोंमें भयानक रोग, प्रशासनाधिकारीकी रमणीको कष्ट एवं पूर्णमासीमें परिवेष हो तो साधारणत: शान्ति, समृद्धि एवं सुखकी सूचना मिलती है। यदि परिवेषके भीतर रेखा दिखलाई पड़े तो नगरवासियोंको कष्ट और परिवेषके बाहर रेखा दिखलाई पड़े तो देशमें शान्ति और सुखका विस्तार होता है। स्निग्ध, श्वेत और दीप्तिशाली परिवेष विजय, लक्ष्मी, सुख और शान्ति की सूचना देता है।
रोहिणी, धनिष्ठा और श्रवण नक्षत्रमें परिवेष हो तो देशमें सुभिक्ष, शान्ति, वर्षा एवं हर्षकी वृद्धि होती है। अश्विनी, कृत्तिका और मृगशिरामें परिवेष हो तो समयानुकूल वर्षा, देशमें शान्ति, धन-धान्यकी वृद्धि एवं व्यापारियोंको लाभ; भरणी
और आश्लेषामें परिवेष हो तो जनताको अनेक प्रकारका कष्ट, किसी महापुरुषकी मृत्यु, देशमें उपद्रव, अन्न कष्ट एवं महामारीका प्रकोप; आर्द्रा नक्षत्रमें परिवेष हो