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| भद्रबाहु संहिता
विशेष—इस चतुर्थ अध्याय में आचार्य श्री श्रुतकेवली, परिवेषों का वर्णन कर रहे हैं, इन परिवेषों से भी मेघ, वर्षा, शुभाशुभ, अनिष्ट, विनाश, लाभ आदि देखे जाते हैं, परिवेष, चन्द्र या सूर्य पर एक धूमिलाकार गोलावृत्त होता है उसी को परिवेष कहते है, ये परिवेष दिन में सूर्य के ऊपर और रात्रि में चन्द्र के ऊपर दिखाई पड़ते हैं विभिन्न रंग के होते हैं कभी-कभी सूर्य या चन्द्र को अति नजदीक या दूरी कर दिखाई पड़ते है, लेकिन परिवेषो का उद्भव जब ही होता है जब आकाश कुछ बादलों से गिरे हुऐ रहते हैं, निर्मल आकाश होने पर सूर्य या चन्द्रमा में कभी परिवेष नहीं पड़ता है, परिवेष भी विभिन्न रंगों में व विभिन्न आकारों में पड़े है उसी के अनुसार उनका शुभाशुभ फल होता है, परिवेष स्निग्ध रूक्ष भी होते हैं, अलग-अलग ग्रहों व नक्षत्रों के अनुसार फल भी अलग-अलग हो जाता है जो नक्षत्र व ग्रह इस परिवेष में दिखलाई पड़े उसी के अनुसार हानि-लाभ प्राप्त होता है, तिथियों के अनुसार भी परिवेषों का फलादेश देखना चाहिये, चन्द्रमा पर होने वाला परिवेष मेघ व वर्षा का सूचक होता है वर्षा होगी या नहीं होगी आदि-आदि।
सूर्य पर परिवेष यह सूचित करता है कि इस वर्ष धान्योत्पति कितनी होगी या होगी या नहीं होगी, ये परिवेष आषाढादि महिनों में भी दिखलाई पड़ते हैं,
और इनका प्रभाव देश व राजा के ऊपर भी होता है दुर्भिक्ष या सुभिक्ष शान्ति या युद्ध और वस्तु संबधिभाव महँगे या सस्ते रहेंगे सब कुछ अवगत होता है कौन से वार को चन्द्रमा सूर्य परिवेष पड़ा तो कौन-कौन सी वस्तुएँ तेजी या सस्ती होगी, परिवेष देखने वाला अत्यन्त ज्ञानी और सब प्रकार के दृष्टिकोण से फलादेश का विचार करने वाला होना चाहिये तब ही उसका निमित्त ज्ञान सच्चा निकल सकता है ऐसा निमित्त ज्ञानी हो, देश, राष्ट्र, नगर, राजा और प्रजा, श्रमणादिक को बचा सकता है निमित्तज्ञानी को अष्टांग निमित्तका वेत्ता होना चाहिये, दृढ़ श्रद्धानि होना चाहिये, सच्चा आगमज्ञ होना चाहिये वीतराग वाणी पर सच्चा श्रद्धान करने वाला हो संयमी हो इन्द्रिय विजय हो, परिवेषों का संचार कैसा हो रहा है जानकर फलादेश कहे ऐसे निमित्त ज्ञानी की ही बात सच्ची हो सकती है। परिवेष के दिखने पर कोई परिवेष शीघ्र फल देता है तो कोई थोड़े दूर जाकर तो कोई अतिदूर समयों में शुभाशुभ फल देता है। इन सब बातों का खुलासा आगे डॉ. नेमिचन्द आरा वालों के अनुसार दे रहे है।