________________
अंशुमाली यदा तु स्यात् परिवेषः समन्ततः । सपुरराष्ट्रस्य देशस्य
तदा
ग्रहः
:
भद्रबाहु संहिता
( यदातु ) जब (अंशुमाली) सूर्य का ( परिवेषः) परिवेष (समन्ततः) चारों तरफ से (स्यात्) होता है तो (तदा) तब (सपुरराष्ट्रस्य) नगर और राष्ट्र को व (देशस्य ) देश के मनुष्य ( रुजमादिशेत्) रोगी दिखेगे !.
:.
भावार्थ — जब सूर्य के ऊपर रहने वाला परिवेष सूर्य के चारों तरफ हो तो समझो राष्ट्र या देश या नगर की प्रजा को कोई न कोई रोग हो जायगा ॥ २२ ॥ नक्षत्र : चंद्राणां परिवेषः
. अभीक्ष्णं यत्र वर्तेत तं देशं
..
परिवेषो कालेषु
रुजमादिशेत् ॥ २२ ॥
(ग्रह) ग्रह (नक्षत्र) नक्षत्र (चंद्राणां ) चन्द्रमा को (परिवेषः) परिवेष (प्रगृह्यते) आवेष्टित करता है. (अभीक्ष्णं) और हर समय (यत्र) वहाँ ( वर्तेत) उस पर रहता है तो (तं) उस (देश) देश को (परिवर्जयेत् ) शीघ्र छोड़ देना चाहिये ।
भावार्थ — नौ ग्रहों, २८ नक्षत्रों और चन्द्र को यदि परिवेष ग्रहण कर लेता है और प्रतिक्षण उनके ऊपर ही आच्छादित रहता है तो समझो उस देश में महान् कोई भय उत्पन्न होना वाला है आचार्य कहते हैं कि उसे देश को शीघ्र ही छोड़ देना चाहिये ॥ २३ ॥
,"
नक्षत्रेषु
प्रगृह्यते । ... परिवर्जयेत् ।। २३ ।।
विरुद्धेषु वृष्टिर्विज्ञेया
संत
यदि (परिवेषो) परिवेषा (नक्षत्रेषु) नक्षत्रों पर (च) और (गृहेषु) ग्रहों के ऊपर (विरुद्धेषु) विरुद्ध रहता है तो (कालेषु) थोड़े ही समय में (वृष्टि) वर्षा (र्विज्ञेया) होगी जानना चाहिये (भयम्) भय भी (अन्यंत्र) दूसरी जगह होगा (निर्विशेत् ) ऐसा निर्देश किया गया है।
'५: i
भावार्थ- नक्षत्रों के ऊपर और ग्रहों के ऊपर यदि परिवेष रहता है तो समझना चाहिये थोड़े ही समय में वर्षा होगी, अन्यत्र कहीं भय भी होगा ॥ २४ ॥
७६
ग्रहेषु
घ।
भयमन्त्रनिर्दिशेत् ॥ २४ ॥
अभ्रशक्तिर्यतो गच्छेत् ता दिशं त्वभियोजयेत्।
"
रिक्ता वा विपुला चाग्रे जयं कुर्वीत शाश्वतम् ॥ २५ ॥
REGA