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चतुर्थोऽध्यायः
भावार्थ-जिस देश में यदि सूर्य तीन वर्ण के परिवेश से आच्छादित हो जाय तो समझो उस देश में चोर-डाकुओं का भय उत्पन्न हो जायगा, उन्हीं का जोर सर्वत्र होकर प्रजा को कष्ट पहुँचेगा।।१८॥ .
हरितो नीलपर्यन्तः परिवेषो यदा भवेत।
आदित्ये यदि वा सोमे राज व्यसनमादिशेत् ।। १९॥ (आदित्ये) सूर्य (यदि वा) वा (सोमे) चन्द्रमा के ऊपर (यदा) जब (हरितो) हो वर्ण से, (नीलपर्यन्तः) नीले रंगका (परिवेषो) परिवेश (भवेत्) होता है तो, (राज) राज्य की प्रजा को (व्यसनं) व्यसन कष्ट (आदिशेत्) दिखाई देता है।
भावार्थ—सूर्य अथवा चन्द्रमा के ऊपरे हरे से नील वर्ण का परिवेश हो तो जानना चाहिये उस देश की प्रजा को व्यसन कष्ट होगा॥१९॥
दिवाकरं बहुविधः परिवेषो रूणद्धिहि।
भिद्यते बहुधा वापि गवां मरणमादिशेत्॥२०॥ (दिवाकर) सूर्य को (बहुविधः) बहुत प्रकार के रंग वाला (परिवेषो) परिवेष (रूणद्धिहि) आच्छादि करता है (वापि) और भी (बहुधा) बहुत प्रकार के (भिद्यते) खण्ड-खण्ड दिखे तो (गवां) गायों का (मरणम्) मरण (आदिशेत्) दिखता है।
भावार्थ-यदि सूर्य के ऊपर बहुत प्रकार के वर्णों वाला परिवेष और वो भी खण्ड-खण्ड रूप दिखे तो समझो गोधन का नाश होगा, गायों का मरण होगा ।। २०॥
यदाऽतिमुच्यते शीघ्रं दिशिचैवाभिवर्धते।
गवांविलोपमपि च तस्य राष्ट्रस्यनिर्दिशेत् ।। २१॥ (यदाऽतिमुच्यते) जिस दिशा का सूर्य के ऊपर का परिवेश छूटता जाय और (दिशिश्चैव) और जिस दिशा में (शीघ्रं) शीघ्र (अभिवर्धते) बढ़ता जाय तो (तस्य) उस (राष्ट्रस्य) राष्ट्र के (गवां) गायों का (विलोपमपि) विलोप भी (निर्दिशेत्) हो जाता है।
भावार्थ-जिस दिशा के सूर्य के ऊपर परिवेष बिगड़ता जाता है और बनता जाता है, जिस दिशा में सूर्य बढ़े, उसी दिशा के गोधनों का लोप हो जायगा, गोधन का अपहरण हो जायगा ॥२१॥