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भद्रबाहु संहिता
व मांसभक्षी जीव अथवा चिता की अग्निरूप, तलवार, हल, मूसल, गदा शक्ति
आदि आयुध रूप होते हैं वे सब अशुभ रूप होते है इनसे विपरीत शुभलक्षण वाले होते है और शुभ होते हैं जो, चन्द्र, सूर्य, ग्रह और नक्षत्रों के परिवेष हैं। ३ ।।
रात्रौ तु सम्प्रवक्ष्यामि प्रथमं तेषु लक्षणम्।
ततः पश्चाद्दिवा भूयो तन्निबोध यथाक्रमम्॥४॥ (रात्रौतु) रात्रि के परिवेष (सम्प्रवक्ष्यामि) कहँगा और (प्रथम) पहले (तेषु) उनके (लक्षणम्) लक्षणों को कहूँगा, (ततः) उसके (पश्चाद्दिवा) बाद दिन के परिवेषोंको (भूयो) कहूँगा (तन्निबोध) उसको (यथा) यथा (क्रमम्) क्रम से कहूँगा।
भावार्थ-अब मैं रात्रिके परिवेषों को कहूँगा और पहले उनके लक्षणों को कहूँगा उसके बाद रात्रिमें होने वाले परिवेषोंको कहूँगा आप लोगों को जानने के लिये में क्रमश: सबका वर्णन करूँगा॥४॥
क्षीर शंखनिभचंद्रे परिवेषो यदा भवेत् ।
तदाक्षेमं सुभिक्षं च राज्ञो विजयमादिशेत् ॥५॥ (चन्द्रे) चन्द्रमा के इर्द-गिर्द (निभ) आकाशमें, (क्षीर) दूध के समान सफेद या (शंख) शंख के समान शुक्ल वर्णका (परिवेषो) परिवेष (यदा) अगर (भवेत्) होता है (तदा) तो (क्षेम) क्षेमकुशल (सुभिक्षं) व सुभिक्ष को करने वाला (च) और (राज्ञो) राजाकी (विजय) विजय को (आदिशेत्) कहता है।
भावार्थ-यदि चन्द्रमा के घेरे हुऐ दूध के समान अथवा शंख के समान परिवेष होतो, सुभिक्ष करने वाला और क्षेमकुशल को करने वाला होता है राजाकी विजय का सूचक है ऐसा समझो राजा की युद्ध में विजय होगी, देश में क्षेमकुशल व सुभिक्ष होगा, ऐसी सूचना ये परिवेश देते हैं॥५॥
सर्पिस्तैलनिकाशस्तु परिवेषो यदा भवेत् ।
न चाऽऽकृष्टोऽति मात्रं च महामेघस्तदा भवेत्।।६।। (सर्पिः) घी, (तैल:) तेलके (निकाशस्तु) वर्णका चन्द्रमा के ऊपर (परिवेषो) परिवेष (यदा) जब (भवेत्) होता है (न चाऽऽकृष्टोऽतिमात्र) और उपर्युक्त के समान