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भद्रबाह संहिता
है। इस प्रकारके प्रदेशका त्याग कर देना ही श्रेयस्कर होता है। गोपुच्छके आकारकी उल्का मंगलवारको आश्लेषा नक्षत्रमें पतित होती हुई दिखलाई पड़े तो यह नाना प्रकारके रोगोंकी सूचना देती है। हैजा, चेचक आदि रोगोंका प्रकोप विशेष रहता है। बच्चों और स्त्रियोंके स्वास्थ्यके लिए विशेष हानिकारक है। किसी भी दिन प्रात:कालके समय उल्कापात किसी भी वर्ण और किसी भी आकृतिका हो तो भी यह रोगों की सूचना देता है. इस समय का उल्कापात प्रकृति विपरीत है। अत: इसके द्वारा अनेक रोगों की सूचना समझ लेनी चाहिये। इन्द्रधनुष या इन्द्रकी ध्वजाके आकारमें उल्कापात पूर्वकी ओर दिखलाई पड़े तो उस दिशामें रोगकी सूचना समझनी चाहिए। किवाड़, बन्दूक और तलवारके आकारकी उल्का धूमिल वर्णकी पश्चिम दिशामें दिखलाई पड़े तो अनिष्टकारक समझना चाहिये। इस प्रकारका उल्कापात व्यापी रोग और महामारियोंका सूचक है। स्निग्ध, श्वेत, प्रकाशमान और सीधे आकारका उल्कापात शान्ति, सुख और निरोगताका सूचक है। उल्कापात द्वारपर हो तो विशेष बीमारियाँ सामूहिकरूपसे होती हैं।
इतिश्री श्रुतके वर्णन भद्रबाहु विरचित भद्रबाहु संहिता का उल्का वर्णन का फल व वर्णन करने वाला तृतीया अध्याय का हिन्दी भाषानुवाद नामकी क्षेमोदय टीका समाप्त:।
(इति तृतीयोऽध्याय: समाप्त:)