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भद्रबाहु संहिता
से देश या राष्ट्र को महान क्षति होती है। श्वेत और पीत वर्ग की सूच्याकार अनेक उल्काएँ किसी रिक्त स्थान पर पतित हो तो देश या राष्ट्र के लिए शुभकारक समझना चाहिए। राष्ट्र के नेताओं के बीच मेल मिलाप की सूचना भी उक्त प्रकार के उल्कापात में ही समझनी चाहिए। मन्दिर के निकटवर्ती वृक्ष पर उल्कापात हो तो प्रशासकों के बीच मतभेद होता है, जिससे देश या राष्ट्र में अनेक प्रकार की अशान्ति फैलती है। पुष्य नक्षत्र में श्वेतवर्ण की चमकती हुई उल्का राजप्रासाद या देवप्रासाद के किनारेपर गिरती हुई दिखलाई पड़े तो देश या राष्ट्र की शक्ति का विकास होता है, अन्य देशों से व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित होता है तथा देश की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है। इस प्रकार का उल्कापात राष्ट्र या देश के लिए शुभ कारक है मघा और श्रवण नक्षत्र में पूर्वोक्त प्रकार का उल्कापात हो तो भी देश या राष्ट्र की उन्नति होती है। खलिहान और बगीचे में मध्यरात्रि के समय उक्त प्रकार की उल्का पतित हो तो निश्चय ही देश में अन्नाभाव होता है तथा अन्न का भाव द्विगुणित हो जाता है।
शनिवार और मंगलवार को कृष्णवर्ण की मन्द प्रकाशवाली उल्काएँ श्मशान भूमि या निर्जन वन-भूमि में पतित होती हुई देखी जायें तो देश में कलह होता है। पारस्परिक अशान्ति के कारण देश की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था बिगड़ जाती है। राष्ट्र के लिए इस प्रकार की उल्काएँ भयोत्पादक एवं घातक होती हैं। आश्लेषा नक्षत्र में कृष्णवर्ण की उल्का पतित हो तो निश्चय ही देश के किसी उच्चकोटि के नेता की मृत्यु होती है। राष्ट्र की शक्ति और बल को बढ़ाने वाली श्वेत, पीत और रक्तवर्ण की उल्काएँ शुक्रवार और गुरुवार को पतित होती हैं।
कृषिफलादेश सम्बन्धी उल्कापात—प्रकाशित होकर चमक उत्पन्न करती हुई उल्का यदि पतन के पहले ही आकाश में विलीन हो जाय तो कृषि के लिए हानिकारक है। मोर पूँछ के समान आकार वाली उल्का मंगलवार की मध्यरात्रि में पतित हो तो कृषि में एक प्रकार का रोग उत्पन्न होता है, जिससे फसल नष्ट हो जाती है। मण्डलाकार होती हुई उल्का शुक्रवार की सन्ध्या को गर्जन के साथ पतित हो तो कृषि में वृद्धि होती है। फसल ठीक उत्पन्न होती है और कृषि में कीड़े नहीं लगते। इन्द्रध्वज के रूप में आश्लेषा, विशाखा, भरणी और रेवती नक्षत्र