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तृतीयोऽध्यायः
में दण्डाकार उल्का पतित होती हुई दिखलाई पड़े तो उस वस्तुको प्राप्ति की तीन मास के भीतर की सूचना समझनी चाहिए। मंगलवार, सोमवार और शनिवार उल्कापात दर्शन के लिए अशुभ हैं; इन दिनों की सन्ध्या का उल्कापात दर्शन अधिक अनिष्टकर समझा जाता है। मंगलवार और आश्लेषा नक्षत्र में शुभ उल्कापात भी अशुभ होता है, इससे आगामी छ: मासों में कष्टों की सूचना समझनी चाहिए। अनिष्ट उल्कापात के दर्शन के पश्चात चिन्तामणि पार्श्वनाथ का पूजन करने से आगामी अशुभ की शान्ति होती है।
राष्ट्रघातक उल्कापात-जब उल्काएँ चन्द्र और सूर्य का स्पर्श कर भ्रमण करती हुई पतित हों, और उस समय पृथ्वी कम्पायमान हो तो राष्ट्र दूसरे देश के अधीन होता है। सूर्य और चन्द्रमा के दाहिनी ओर उल्कापात हो तो राष्ट्र में रोग फैलते हैं तथा राष्ट्र की वनसम्पत्ति विशेष रूप से नष्ट होती है। चन्द्रमा से मिलकर उल्का समाने आवे तो राष्ट्र के लिए विजय और लाभ की सूचना देती है। श्याम, अरुण, नील, रक्त, दहन, असित और भस्म के समान रूक्ष उल्का देश के शत्रुओं के लिए बाधक होती है। रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपद, मृगशिरा, चित्रा और अनुराधा नक्षत्र को उल्का घातित करे तो राष्ट्र को पीड़ा होती है। मंगल
और रविवार को अनेक व्यक्ति मध्यरात्रि में उल्कापात देखें तो राष्ट्र के लिए भयसूचक समझना चाहिए। पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा और पूर्वा भाद्रपद, मघा, आर्द्रा, आश्लेषा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र को उल्का ताडित करे तो देश के व्यापारी वर्ग को कष्ट होता है तथा अश्विनी, पुष्य, अभिजित, कृत्तिका और विशाखा नक्षत्र को उल्का ताडित करे तो कलाविदों को कष्ट होता है। देवमन्दिर या देवमूर्ति को उल्कापात हो तो राष्ट्र में बड़े-बड़े परिवर्तन होते हैं, आन्तरिक संघर्षों के साथ विदेशीय शक्ति का भी मुकाबिला करना पड़ता है। इस प्रकार उल्कापतन देश के लिए महान् अनिष्टकारक है। श्मशान भूमि में पति उल्का प्रशासकों में भय का संचार करती है। तथा देश या राज्य में नवीन परिवर्तन उत्पन्न करती है। न्यायालयों पर उल्कापात हो तो किसी बड़े नेता की मृत्यु की सूचना अवगत करनी चाहिए। वृक्ष, धर्मशाला, तालाब और अन्य पवित्र भूमियों पर उल्कापात हो तो राज्य में आन्तरिक विद्रोह, वस्तुओं की महँगाई एवं देश के नेताओं में फूट होती है। संगठन के अभाव होने