________________
भद्रबाहु संहिता |
पापासूल्कासु यद्यस्तु यदा देवः प्रवर्षति ।
प्रशान्तं तद्भयं विन्द्याद् भद्रबाहुवचो यथा॥६४॥ (यद्यस्तु) यदि (पापासूल्का) पापरूप उल्का दिखाई देने पर (यदा) अगर (देव:) वर्षा (प्रवर्षति) बरस जाती है तो (प्रशान्तंतद्भयं) उस उल्का का भय शांत (विन्द्याद) हो जायगा, (यथा) ऐसा (भद्रबाहुवचो) भद्रबाहु स्वामी का वचन है।
भावार्थ-अगर पापरूप उल्का दिखाई दे और उसी समय मेघ वर्षा हो जावे तो उस पाप रूप उल्का का भय खत्म हो जाता है फिर वह अशुभ रूप फल नहीं देती है ऐसा श्री अष्ठांगानिमित्तज्ञ भद्रबाहु स्वामी ने कहा है, उनका वचन है।। ६४।।
यथाभिवृष्याः स्निग्धा यदि शान्ता निपतन्ति याः।
उल्कास्वाशु भवेत् क्षेमं सुभिक्षं मन्दरोगवान् ।। ६५॥ (यथाभि) जैसे (वृष्या:) वृष (स्निग्धा) स्निग्ध और (शान्ता) शान्त (उल्का) उल्का (यदि) यदि (निपतन्ति) गिरती है तो (क्षेमं) क्षेम कुशल (सुभिक्षं) सुभिक्ष (स्वाशु) अथवा उस दिशा में (मन्दरोगवान) मंदरोग उत्पन्न (भवेत्) होता है।
भावार्थ-उल्का, दुष्ट, या स्निग्ध वा शांत होकर जिस दिशायें गिरे तो . उस दिशा में क्षेत्र कुशल वा सुभिक्ष करती है, किन्तु थोड़ा रोग भी उत्पन्न करती है, इस प्रकार की उल्का तीन प्रकार का फल देती है यदि उल्का दुष्ट हो तो थोड़ा रोग करेगी, अगर शांत उल्का गिर तो सुभिक्ष करने वाली होती है।। ६५ ।।
यथामार्गं यथा वृद्धि यथा द्वारं यथाऽऽगमम्।
यथाविकारं विज्ञेयं ततो बूयाच्छुभाऽशुभम्॥६६॥ (यथामार्ग) जिस मार्ग (यथा वृद्धि) जिस वृद्धि (यथा द्वारं) जिस द्वार (यथाऽऽगमम्) जिस आगमन से (यथा विकार) यथा विकार (ततो) उसी के अनुसार (बूयाच्छ) कहा गया है, (शुभाऽशुभम्) शुभाशुभको को (विज्ञेयं) जानना चाहिये।
भावार्थ-यदि उल्का जिस मार्ग से व जिस आगमन से व जिस विकार से व जिस वृद्धि व जिस द्वार से गिरे तो उसी के अनुसार शुभाशुभ फल कहा गया है, ऐसा जानना चाहिये॥६६॥