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तृतीयोऽध्यायः
भावार्थ-जिसके जन्म नक्षत्र को उल्का बाण के सदृश होकर वाधित करे तो गिरे तो, उसका समझो अवश्य ही विदारण हो जायेगा, वो व्यक्ति चीरा फाड़ा जायगा और उल्का यदि नाना प्रकार के वर्णो को धारण करती हुई जन्म नक्षत्र पर गिरे तो जन्म नक्षत्र वाले को रोग उत्पन्न हो जाते है व रोगी हो जायगा यहाँ जन्म नक्षत्र से समझना चाहिये कि जिस दिन उसका जन्म हुआ हो, उस दिन कौनसा नक्षत्र था उसी नक्षत्र से यहाँ सम्बन्ध है उसे नक्षत्र पर जब उल्का गिरे तो उपर्युक्त फल होगा ।। ६१॥
उल्का येषां यथा रूपा दृश्यते प्रतिलोमतः।
तेषांततो भयं विन्द्यादनुलोमा शुभागमम् ॥१२॥ (उल्का) उल्का (प्रतिलोमतः) प्रतिलोम मार्ग ले (कथा) जिस (रूपा) रूप होकर (दृश्यते) दिखाई देता है तो (तेषां) उसको (भयं) (विन्द्याद) होगा, (ततो) यदि (अनुलोमा) अनुलोम मार्ग से होकर दिखाई दे तो (शुभागमम्) शुभ का आगमन होगा।
भावार्थ-यदि उल्का प्रतिलोम मार्ग होकर जिस रूप के व्यक्ति पर गिरती हुई दिखाई दे तो उस व्यक्ति को भय उत्पन्न होगा, और अनुलोम मार्ग में जिस रूप की उल्का दिखाई दे तो समझो शुभ होने वाला है कोई शुभ कार्य होगा॥६२॥
उल्का यत्र प्रसर्पन्ति भ्राज माना दिशो दश।
सप्तरात्रान्तरं वर्ष दशाहादुत्तरं भयम्।। ६३|| (उल्का) उल्का (यत्र) जहां पर (प्रसर्पन्ति) फैलती हर्स दिखाई देती है तो (दिशो) दशों (दिशम्) दिशाओं में (भ्राज) जनता भाग जाती है। (सप्त) सात (रात्रान्तर) रात्रि के अन्तर में (वर्ष) वर्षा हो जाती है तो फल नहीं होगा, नहीं तो (दशाहाद) दस दिन में (उत्तरं) अवश्य ही (भयम्) भय उत्पन्न होगा।
भावार्थ- यदि उल्का फैलती हुई जहांपर दिखाई दे तो जानना चाहिये वहां के लोगों को भय के कारण इधर उधर भागना पड़ेगा, भगदड़ मच जायेगी अगर सात रात्रि में वर्षा हो जाती है तो उपर्युक्त फल उपसम हो जायगा फिर वह उल्का जनता को कष्ट नहीं देगी, नहीं तो दस दिनों में अवश्य ही भगदड़ मच जायेगी॥६३ ॥