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भद्रबाहु संहिता ।
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सूर्य के साथ (प्रवर्तते) प्रवर्तन करती हुई (येषां) जिस (दिशं) दिशा को (पतेत्) गिरती है तो (तेषां) उस टिणा को (भयं) भय (सञ्जायते) उत्पन्न करती है।
भावार्थ-जिस-जिस वर्ण वाली उल्का सूर्य के साथ मिलकर जिस दिशा में गिरती है, उसी दिशा में महान भय उत्पन्न होता है, ये उल्का भय को उत्पन्न करने वाली होती है, जिस वर्ण की उल्का है, उसी वर्ण वाले को भय उत्पन्न होता है॥३॥
नीला पतन्ति या उल्का: सस्यं सर्वं विनाशयेत् ।
त्रिवर्णात्रीणि घोराणि भयान्युल्का निवेदयेत्॥४॥ (या) जो (उल्का:) उल्का (नीला) नील वर्ण की (पतन्ति) गिरती है (सर्व) सब (सस्य) धान्यों को (विनाशयेत्) विनाश करती है (त्रिवर्णा) तीन वर्ण वाली (उल्का:) उल्का (घोराणि) घोर (भयान्य) भय (त्रिणि) तीन प्रकार का (भयं) भय को (निवेदयेत्) निवेदन करती है।
भावार्थ-जो नीलवर्ण वाली होकर उल्का गिरती है तो वो सर्व धान्यों को नाश कर देती है और तीन वर्ण वाली होकर उल्का गिरे तो उस देश में तीन प्रकार का भय उत्पन्न होता है।। ४ ॥
विकीर्यमाणा, कपिला विशेष वामसंस्थिता।
खण्डा भ्रमन्त्यो विकृताः सर्वा उल्का: भयावहा॥५॥ (विकीर्यमाणा) बिखरी हुई (कपिला) कपिल वर्ण की (उल्का:) उल्का (विशेष) विशेष कर (वामसंस्थिता) वाम भाग में संस्थित (भ्रमन्त्यो) भ्रमण करने वाली (खण्डा) खण्डरूप (विकृता:) विकृत दिखे तो (सर्वा) सब (भयावहा) भय को उत्पन्न करती
भावार्थ-कपिल वर्ण की उल्का वाम भाग में गमन करने वाली, खण्डरूप घूमती रूप, और विकृत रूप दिखाई दे तो ये सब महान भय उत्पन्न करती है॥५॥
उल्काऽशनिश्च, धिष्ण्यं च प्रपतन्ति यतो मुखाः।
तस्यां दिशि विजानीयात् ततो भयमुपस्थितम्॥६॥ (उल्का) उल्का (अशनिश्च) अशनि और (धिष्ण्यं) धिष्ण्य (च) और (यतो)