________________
द्वितीयोऽध्यायः
तृतीयोऽध्यायः
उल्का वर्णन नक्षत्रं यस्य यत्युंसः पूर्णमुल्का प्रताडयेत्।
भयं तस्य भवेद् घोरं यतस्तत् कम्पते हतम्॥१॥ (यस्य) जिस (यत्पुंसः) पुरुष के (नक्षत्र) नक्षत्र को (पूर्ण) पूर्णरूप से (उल्का) उल्का (प्रताड़येत्) प्रताड़ित करती है (तस्य) उस पुरुष को (घोरं) घोर (भयं) भय (भवेद) होता है (यतस्तत्) अथवा (कम्पतेहतम्) घात हो जाता है।
भावार्थ-जिस पुरुष के जन्म नक्षत्र को उल्का प्रताड़ित करती है तो उसको महान् भय उत्पन्न होता है, और उस नक्षत्र को अगर कम्पित करती है तो उस व्यक्ति को घात ही कर देती है, नाम नक्षत्र को ताड़ित करना अथवा कम्पायमान करना मानो उस व्यक्ति पर प्राणघातक संकट आने वाला है॥१॥
अनेकवर्णनक्षत्रमुल्का हन्युर्यदा समाः ।
तस्यदेशस्य तावान्ति भयान्युग्राणि निर्दिशेत् ।। २ ।। (उल्का) उल्का (अनेक वर्ण) अनेक वर्ण वाली होकर (नक्षत्र) नक्षत्र को (र्यदासमा:) बार-बार (हन्यु) ताड़ित करे तो (तस्य) उस (देशस्य) देश को (न्युग्राणि) उग्र (भया) भय (निर्दिशेत) होता है, ऐसा निर्दिश किया है।
भावार्थ-अनेक वर्ण वाली उल्का जिस देश के नाम नक्षत्र को ताड़ित करती है तो उस देश में व नगर में उग्र भय उत्पन्न होता है, तो वर्ष उत्पातों से सहित जाना है॥२॥
येन वर्णेन संयुक्ता सूर्यादुल्का प्रवर्तते।
तेभ्य: सञ्जायते तेषां भर्यं येषां दिशं पतेत्॥३॥ (येन) जिस (वर्णेन) वर्ण से (संयुक्ता) संयुक्त होकर (उल्का) उल्का (सूर्याद्)