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द्वितीयोऽध्यायः
भावार्थ-जो पाँच भूतों का शरीर धारण करने वाले स्वर्ग के देव जब स्वर्ग से मरण करते हैं तो उनका, शरीर आकाश में चमकता है, उन्हीं निमित्त शास्त्र के जानकारों ने उल्का कहा है॥६॥
तत्र तारा तथा धिष्ण्यं विद्युच्चाशनिभिः सह।
उल्का विकारा बोद्धव्या निपतन्ति निमित्ततः ।। ७॥ (तत्र) वो (तारा) नारी (तथा) तथा (धिष्ण्यं) धिष्ण्य (विधुच्चाशनिभिः) विद्युत और अशनि (उल्का) उल्का के (विकारा) विकार (बोद्धव्या) जानना चाहिये (सह) वो सब (निमित्ततः) निमित्त पाकर (निपतन्ति) गिरते हैं।
भावार्थ-वो सब तारा, धिष्ण्य, विद्युत और अशनि, ये सारे उल्का के विकार हैं और निमित्त पाकर आकाश से गिरते रहते हैं।।७।।
ताराणां च प्रमाणं च धिष्ण्यं तदद्विगणं भवेत्।
विधुद्विशालकुटिला रूपतः क्षिप्रकारिणी॥८॥ (ताराणांच) तारा नाम की उल्का से धिष्ण्य, उल्का (तद्विगुणं) उससे दो गुनी (भवेत्) होती है और विद्युत उल्का है और (विशाल) विशाल (कुटिला) कुटिल (रूपतः) रूप (क्षिप्रकारिणी) शीघ्र दौड़ने वाली होती है।
भावार्थ-तारा नाम की उल्का से धिष्ण्य उल्का द्विगुणी होती है और विद्युत उल्का, शीघ्र दौड़ने वाली, कुटिल और विशाल होती है॥८॥
अशनिश्चक्रसंस्थाना दीर्घा भवति रूपतः।।
पौरूषी तु भवेदुल्का प्रपतन्ती विवर्द्धते॥९॥ (अशनि) अशनि नाम की उल्का (श्चक्र) चक्राकार होती है (पौरूषी तु) पौरूषि नाम की उल्का (दीर्घा भवति) बड़ी दीर्घ (रूपत:) रूप भवनि होती है (प्रपतन्ती) गिरने के समय में (विवर्द्धते) बढ़ती जाती है।
___ भावार्थ-अशनि नाम की उल्का चक्राकार होती है, पौरूषी नाम की उल्का बड़ी दीर्घ गिरते समय लम्बी बढ़ती जाती है॥९॥