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भद्रबाहु संहिता
जिसकी जीभ कुछ लालिमा के साथ चिकनाई लिये हो वह पुरुष निःसन्देह सब विद्याओं में चतुर होता है ।
कृष्णतालुनरा
कुलनाशम् ।
थें च संभवं पद्मपत्रसमं तालु स नरो भूपतिर्भवेत् ॥
श्वेततालुन
हयस्वरनरा
काले तालु वाला पुरुष कुल का नाशक तथा कमल - पत्र के समान तालु वाला राजा होता है।
ये च धनवंतो भवन्ति ते । ये च धनधान्यसुभोगिनः ॥
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जिन मनुष्यों का तालु सफेद रंग का होवे धनवान् होते हैं। एवं जिनका स्वर घाड़े के समान हो तो धनी होता है।
भृंगाणां
मेघगम्भीरनिर्घोष च विशेषतः । ते भवन्ति नरा नित्यं भोगवन्तो धनेश्वराः । हंसस्वरश्च राजा स्यात् चक्रवाकस्वरस्तथा । व्याघ्रस्वरो भवेत् क्लेशी सामुद्रवचनं यथा ॥
जिनका स्वर घोड़े के समान होवे वह धनी होते हैं, मेघ के समान गम्भीर घोष वाले और खास करके भौरों की गुंजार सरीखे स्वर वाले पुरुषनित्य भोगवान् और बड़े धनवान् होते हैं, हंस की तरह स्वर वाले और चकवे की तरह स्वर वाले राजा होते हैं। बाघ के समान स्वर वाले दुःखी होते हैं— ऐसा सामुद्रिक शास्त्र का कहना है ।
पार्थिवः शुकनासा च दीर्घनासा च भोगभाक् । ह्रस्वनासा नरो यश्च धर्मशीलशते रतः ॥ स्थूलनासा नरो मान्य: निंद्याश्च हयनासिकाः । सिंहनासा नरो यश्च सेनाध्यक्षो भवेत्स च ॥
शुक की सी नाक वाले राजा, लम्बी नाक वाले भोगी, पतली नाक वाले धर्मनिष्ठ, मोटी नाक वाले माननीय, घोड़े की सी नाक वाले निंदनीय, और सिंह की सी नाक वाले सेनापति होते हैं।